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________________ 20. भानु अग्रिम दिन तो आ सकता है "आता ही है ! 316 : मूक माटी परन्तु पथ पर चलते-चलते अध-बीच मुड़ कर नहीं आता मुड़ कर आना तो दूर, मुड़ कर देखता तक नहीं वह, पूर्व से पश्चिम की और यात्रा करता पश्चिम से पूर्व की ओर जाता हुआ देखा नहीं गया आज तक, और सम्भव भी नहीं । दाताओं, विधिद्रव्यों की पहचान कब, कैसा कर लेता है पात्र, पता तक नहीं चल पाता बिजली की चमक की भाँति अविलम्ब सब कुछ हो जाता है । " पात्र का प्रांगण में आना, फिर बिना पाये भोजन-पान लौट जाना" पनी पीड़ा होती है दाता को इससे " यूँ ये पंक्तियाँ एक दाता के मुख से निकल पड़ीं। हाथोंहाथ सन्तों की बात भी याद आई उसे, कि परम-पुण्य के परमोदय से पात्र दान का लाभ होता है हमारे पुण्य का उदय तो है परन्तु, अनुपात से ६
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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