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पतन पाताल का महसूस ही उत्थान - ऊँचाई की
आरती उतारना है ! किन्तु बेटा ! इतना ही पर्याप्त नहीं है। आस्था के विषय को आत्मसात् करना हो उसे अनुभूत करना हो
"तो
....... साधना के चे में .. . . . . . .... .. स्वयं को ढालना होगा सहर्ष ।
पर्वत की तलहटी से भी हम देखते हैं कि उत्तुंग शिखर का दर्शन होता है, परन्तु चरणों का प्रयोग किये बिना शिखर का स्पर्शन
सम्भव नहीं है ! हाँ ! हाँ !! यह बात सही है कि, आस्था के बिना रास्ता नहीं मूल के बिना चूल नहीं, परन्तु मूल में कभी फूल खिले हैं ? फलों का दल वह दोलायित होता है चूल पर ही आखिर!
10 :: मूक माटी