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________________ : जा औरों से क्या, अपने शरीर की ओर निहारते नहीं। कुछ पल खिसक गये, कि. फूल का मुख :पमतमाने लगा क्रोध के कारण; पाखी-रूप अधर-पल्लव फड़फड़ाने लगे, क्षोभ से; रक्त-चन्दन आँखों से वह ऊपर बादलों की और देखता हैओ कृतान कलह-कम-मग्न बने हैं; हैं विघ्न के सात बतार, :.::. .:. :::::: संवेगमय जीवन के प्रति उद्वेग-आवेग प्रदर्शित करते, और जिनका भत्रिप्य भयंकर, शुभ-'भावों का भग्नावशेष मात्र ! भिन्न-भिन्न पात्रों को देख कर भिन्न-भिन्न भाव-भंगिमाओं के साथ यह जो फूल का वमन-नमन परिणमन हुआ, हुआ वनि' - परिवर्तन, उतना ही पर्याप्त हुआ पवन के लिए। हाँ : हां ! अनुक्त भी ज्ञात होता है. अवश्य उद्यमशील व्यक्ति के लिए फिर 'तो'.. संयमशील भक्ति के लिए किसी भी बात की अव्यक्तता स!! :: मृक मारी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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