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________________ केवल धनुष दिख रहा कार्यरत इन्द्रधनुष ! महापुरुष प्रकाश में नहीं आते आना भी नहीं चाहते, प्रकाश-प्रदान में ही उन्हें रस आता हैं यह बात निराली है, कि प्रकाश सबको प्रकाशित करेगा ही स्व हो या पर, प्रकाश्य' भर को ! फिर सत्ता-शून्य वस्तु भी कहां है ? फिर, यह भी सम्भव कहाँ 7 कि सत्ता हो और प्रकाशित न हो ? इन्द्र-सम वही चाहता हे 'यह' भी । मैं यथाकार बनना चाहता हूँ व्यथाकार नहीं । और मैं तथाकार बनना चाहता हूँ कथाकार नहीं । इस लेखनी की भी यही भावना है कृति रहे, संस्कृति रहे आगामी असीम काल तक जागृत जीवित अजित ! सहज प्रकृति का वह शृंगार - श्रीकार मनहर आकार ले जिसमें आकृत होता है । कर्ता न रहे, वह विश्व के सम्मुख कभी भी मृक्क पाटी : 245
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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