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________________ 'ग्रहण' की व्यवस्था अविलम्ब होगी। 'अकीर्ति का कारण कदाग्रह है' कदाग्रही को मिलता आया है चिर से कारागृह वह ! कटोर कर्कश कर्ण-कटु शब्दों की मार सुन कर दशों-दिशाएँ बधिर हो गई, नभ-मण्डल ही निस्तेज हुआ फैले बादल-दलों में डूब-सा गया अवगाह-प्रदाता अवगाहित-सा हो गया ! और, प्रभाकर का प्रभा-मण्डल भी कुछ-कुछ निष्प्रभ हुआ कहता है, कि 'अरे ठगी, और को ठग कर ठहाका लेनेवालो ! अरे, खण्डित जीवन जीनेवालो, पाखण्डु-पक्ष ले उड़नेवालो ! यह रहस्य की बात समझने में अभी समय लगेगा तुम्हें ! गन्दा नहीं बन्दा ही भयभीत होता है विषम-विधन संसार से -- और, अन्धा नहीं, आँख-बाला ही भयभीत होता है परम-सघन अन्धकार से। 232 :: मूक माटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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