SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 231
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जिनमें सहन-शीलता आ ठनों हनन-शीलता सो हनी, जिनमें सन्तों-महन्तों के प्रति नति नमन-शीलता जगी यति वजन-शीलता जगी पक्षपात से रीता हो कर न्यायपक्ष की गीता-समीता बनी'! भावी भोगों की अभिलाषा को । आभेशाप देतो-सी : शुक्ला-पद्मा-पीता-लेश्या-धरी भीग भावों, भीगी आँखों वाली विनय अनुनय से भरी प्रभाकर को परिक्रमा देती पुनः पुण्य में पलटाने पाप के पाक को । घटती इस घटना का अवलोकन किया धरती की आँखों ने, उपरिल देहिलता झिलमिलाई निचली स्नेहिलता से मिला आई। धरती के अनगिन कर ये अनगिन कणों के बहाने अधर में उठते अविलम्ब ! और, बटना-स्थल तक पहुंचते बदली की आँखों से छर कर गालों पर, कुछ पल टहरे, चमकते मात्विक जीवन के सूचक शित-शुभ्र विशुद्ध टपकते जल-कणों को सहलाने । मक गरी ।
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy