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________________ इससे इस लेखनी का गला भी भर आता है, माँ का समर्थन करता हुआ - "कभी किसी दशा पर इसकी आँखों में, करुणाई छलक आती और कभी किसी दशा पर इसकी आँखों में अरुणाई झलक आती है क्या करूँ ? विश्व की विचित्रता पर रोऊँ "क्या ""हँसूँ"? बिलखती इस लेखनी को विश्व लखता तो है इसे भरसक परखता भी है ईश्वर पर विश्वास भी रखता है और परन्तु, उस पावन पथ पर ईश्वर का इस पर गहरा असर भी हैं पर इतनी ही कसर है कि वह असर सर तक ही रहा है, अन्यथा सर के बल पर क्यों चल रहा है, आज का मानव ? इसके चरण अचल हो चुके हैं माँ ! आदिम ब्रह्मा आदिम तीर्थंकर आदिनाथ से प्रदर्शित पथ का आज अभाव नहीं है माँ ! मूकमाटी 151
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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