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________________ जो अंगातीत होती है मेरा संगी संगीत है सप्त-स्वरों से अतीत ''! श्रृंगार के अंग-अंग ये खंग-उतार शीलवाले हैं युग छलता जा रहा है और श्रृंगार के रंग-रंग ये अंगार-शीलवाले हैं, युग जलता जा रहा है, इस अपाय का निवारक उपाय "मिला इसे आज . ............... अपूर्व पेय के रुप में ! तन का खेद टल कर चूर होता है पल में मन का भेद धुल कर दूर होता है पल में इसका पान करने से। मेरा संगी संगीत है समरस नारंगी-शीत है। किसी वय में बँध करके रह सकूँ ! रहा नहीं जाता है और किसी लय में सध करके कह सकूँ ! कहा नहीं जाता है। मेरा संगी संगीत हैं मुक्त नंगी रीत है। मूक माटी :: 145
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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