SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गम्भीरता धीरता कहाँ उसमें ? बालक-सम बावला होता है वह तभी तो! स्थित-प्रज्ञ हँसते कहाँ ? मोह-माया के जाल में आत्म-विज्ञ फंसते कहाँ ?" अपनी दाल नहीं गलती, लख कर अपनी चाल नहीं चलती, परख कर हास्य ने अपनी करवट बदल ली। और साथी का स्मरण किया, जो महासत्ता माटी के भीतर, बहुत दूर सततरसातल उपलत.. ... ... . . . . . .:..:. :: :: .. .. .. ... ...... कराल-काला रौद्र रस जग जाता है ज्वलनशीलवाला हृदय-शुन्ध अदय-मूल्यवाला, घटित घटना विदित हई उसे चित्त शुभित हुआ उसका पित्त कुपित हुआ उसका भृकुटियाँ टेढ़ी-सी तन गई आँख की पुतलियाँ तो लाल-लाल तेजाबी बन गईं। देखते-देखते गुब्बारा-सी फड़फड़ाती लम्बी नासा फूलती गई उसकी। अगर बाती को अगरबाती का योग नहीं मिलता'"तो. 134 :: मृक पाटी
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy