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________________ जिसे पाने वाले पचा न पाते सही अन्यथा हमारा रुधिर लाल होकर भी इतना दुर्गन्ध क्यों ? (पृ. xxh Hri और संठ से पत्कुण कहता है : सूखा प्रलोभन मत दिया करो स्वाश्रित जीवन जिया करो, कपटता की पटुता को जलांजलि दो ! मुजा : नविता को श्रद्धांजलि दो। शालीनता की विशालता में आकाश समा जाय और जीवन उदारता का उदाहरण बने! अकारण ही पर के दुःख का सदा हरण हो! (पृष्ठ 347-SA और अन्त में पाषाण-फलक पर आसीन नीराग साधु की वन्दना के उपरान्त स्वयं आलंकवाद कहता है : हे स्वामिन् ! समग्र संसार ही/दुःख से भरपूर है! यहाँ सुख है, पर वैषयिक/और वह भी क्षणिक! यह"तो"अनुभूत हुआ हमें, परन्तु अक्षय सुख पर/विश्वास नहीं हो रहा है; हाँ, हाँ !! यदि/अविनश्वर सुख पाने के बाद आप स्वयं उस सुख को हमें दिखा सको/या उस विषय में अपना अनुभव बता सको तो सम्भव है।हम भी विश्वस्त हो आप-जैसी साधना को जीवन में अपना सकें।... 'तुम्हारी भावना पूरी हो' ऐसे वचन दो हमें, बड़ी कृपा होगी हम पर। (पृष्ठ 484-85) गुरु तो प्रवचन ही दे सकते हैं, 'वचन' नहीं। आत्मा का उद्धार तो अपने ही पुरुषार्थ से हो सकता है और अविनश्वर सुख वचनों से बताया नहीं जा सकता। वह तो साधना से प्राप्त आत्मोपलब्धि हैं। साधु की देशना है : सोलह
SR No.090285
Book TitleMook Mati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyasagar Acharya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages510
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size4 MB
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