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... यहाँ आक्रमण हो रहा है ::..
वहीं निकट में एक गुलाब का पौधा खड़ा है सुरभि से महकता।
और ध्वनि गूंजती है सतेज शूल-दलों की ओर से
कि इस बात को हम स्वीकारते हैं
दूसरों की पीड़ा-शल्य में हम निमित्त अवश्य हैं इसी कारण से हम शूल हैं। तथापि सदा हमें शूल के रूप में ही देखना बड़ी भूल है, कभी कभी शूल भी अधिक कोमल होते हैं
___फूल से भी और कभी कभी फूल भी अधिक कठोर होते हैं "शूल से भी।
मृदु-मांसल गालों से हमें छू लेती है फूली पुष्पावली वह इस कठिन चुभन से इस मुदता की कली-कली खिल उठती है
मूक माटी :: #