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लो, अब शिल्पी
मात्रानुकूल मिलाता है छना निर्मल जल। नूतन प्राण फूंक रहा है माटी के जीवन में करुणामय कण-कण में,
अलगाव से लगाव की ओर एकीकरण का आविर्भाव
और फूल रही है माटी। जलतत्व का स्वभाव थावह बहाव इस समय अनुभव कर रहा है ठहराव का। माटी के प्राणों में जा पानी ने वहाँ नव-प्राण पाये हैं, ज्ञानी के पदों में जा अज्ञानी ने जहाँ नव-ज्ञान पाया है। अस्थिर को स्थिरता मिली अचिर को चिरता मिली नय-नूतन परिवर्तन'''!
मूक माटी :: 9