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तेरी गोद में ही
और बोध मिलेगा, माँ ! तेरी गोद में ही फिर शोध चलेगा, माँ ! अगणित गुणों के ओघ का!
__ और सुनो, माँ! व्याधि से इतनी भीति नहीं इसे ....जितनी, आधि. से है........:::.
और आधि से इतनी भीति नहीं इसे जितनी उपाधि से। इसे उपधि की आवश्यकता है उपाधि की नहीं, माँ! इसे समधी - समाधि मिले, बस! अवधि - प्रमादी नहीं। उपधि यानी उपकरण- उपकारक है ना! उपाधि यानी परिग्रह - अपकारक है ना!"
और मछली कहती है, "इसलिए मुझे सल्लेखना दो, माँ! बोधि के बीज, सो उल्लेखना दो, माँ! मुझे देखना दो
समाधि को बस देख सकूँ!" इस पर मुस्कान लेती हुई माटी कहती है कि
86 :: एक माटी