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मोक्षमार्ग प्रकाशक-५६
कदाचित् किंचित् साताका उदय हो है सो आकुलतामय है। अर तीर्थंकरादि पद मोक्षमार्ग पाए बिना होय नाहीं । ऐसे मनुष्य पर्यायविषै दुःख ही हैं। एक मनुष्य पर्यायविष कोई अपना भला होनेका उपाय करे तो होय सके है। जैसे काना साँठा की जड़ वा बांड तो चूसने योग्य नाहीं अर बीचकी पेली कानी सो भी चूसी जाय नाहीं। कोई स्वादका लोभी वाकू बिगारै तो बिगारो। अर जो वाको बोई दे तो वाके बहुत सांटे होइ, तिनका स्वाद बहुत मीठा आवै। तैसे मनुष्यपर्यायका बालकवृद्धपना तो सुख भोगने योग्य नाहीं अर नीलकी अवस्था सो रोग नलेशतिर युक्त बड़ा मुरत होइ सकै नाहीं । कोई विषय सुखका लोभी याको बिगारै तो बिगारो। अर जो वाको धर्मसाधनविषै लगावै तो बहुत ऊँचे पदको पावै। तहां सुख बहुत निराकुल पाइए। तातै इहां अपना हित साधना, सुख होने का प्रमकरि वृथा न खोवना।
देवगतिके दुःख ___ बहुरि देवपर्यायविष ज्ञानादिककी शक्ति किछु औरनित विशेष है। मिथ्यात्वकरि अतत्त्व श्रद्धानी होय रहे हैं। बहुरि तिनकै कषाय किछु मंद है; तहां भवनवासी व्यंतर ज्योतिष्कनिकै कषाय बहुत मन्द नाहीं अर उपयोग तिनका चंचल बहुत अर किछू शक्ति भी है सो कषायनिके कार्यनिविषै प्रवर्त है। कौतूहल विषयादि कार्यनिविषै लगि रहै है सो तिस आकुलताकर दुःखी हो हैं। बहुरि वैमानिकनिकै उपरि-उपरि विशेष मंद कषाय है अर शक्ति विशेष है तातें आकुलता घटनेते दुःख भी घटता है। इहां देवनिके क्रोध मान कषाय है परन्तु कारन थोरा है। तातै तिनके कार्य की गौणता है। काहूका बुरा करना वा काहूको हीन करना इत्यादि कार्य निकृष्ट देवनिक तो कौतूहलादिकरि होइ है अर उत्कृष्ट देवनिकै थोरा हो है, मुख्यता नाहीं। बहुरि माया लोभ कषायनिके कारण पाइए हैं। तातै तिनके कार्य की मुख्यता है तातें छल करना विषयसामग्रीकी चाह करनी इत्यादि कार्य विशेष हो है। सो भी ऊँचे-ऊँचे देवनिकै घाटि+ है। बहुरि हास्य रति कषायके कारन धने पाइए है तातै इनके कार्यनिकी मुख्यता है। बहुरि अरति शोक भय जुगुप्सा इनके कारण थोरे हैं तातै तिनके कार्यनिकी गौणता है। बहुरि स्त्रीवेद पुरुषवेदका उदय है अर रमनेका भी निमित्त है सो कामसेवन करै है। ए भी कषाय उपरि उपरि मन्द है। अहमिन्द्रनिके वेदनिकी मंदताकरि कामसेवन का अभाव है। ऐसे देवनिकै कषायभाव है। सो कषायहीतै दुःख है। अर इनके कषाय जेता थोरा है तितना दुःख भी थोरा है ताते औरनिकी अपेक्षा इनको सुखी कहिए है। परमार्थतै कषायभाव जीव है ताकरि दुःखी ही हैं। बहुरि वेदनीयविष साताका उदय बहुत है। तहां भवनत्रिककै तो थोरा है। वैमानिकनिकै तो उपरि-उपरि विशेष है। इष्ट शरीर की अवस्था स्त्रीमंदिरादि सामग्री का संयोग पाइए है। बहुरि कदाचित् किंचित् असाताका भी उदय कोई कारणकरि हो है। तहां निकृष्टदेवनिकै किछु प्रगट भी है अर उत्कृष्ट देवनिकै विशेष प्रगट नाहीं है। बहुरि आयु बड़ी है। अघन्य दसहजार वर्ष उत्कृष्ट ३१ सागर है। अर ३१ सागर से अधिक आयुका धारी मोक्षमार्ग पाए बिना होता नाहीं । सो इतना काल विषय सुखमें मगन रहे है। बहुरि नामकर्मकी देवगति आदि सर्व पुण्य प्रकृतिनिहीं का उदय है तातें सुख का कारण है।
* गन्ना
गन्ने के ऊपरका फीका भाग। + कम है।