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________________ परिशिष्ट - ३०४ विष्णुकुमार मुनि को विक्रिया ऋद्धि उत्पन्न हुई है। वे उपसर्ग दूर कर सकते हैं। सुल्लक विष्णुकुमार मुनि के पास गया और ७०० मुनियों के उपसर्ग की बात कह कर उन्हें विक्रिया ऋद्धि उत्पन्न होने की बात कही। परीक्षा के लिए विष्णुकुमार मुनि ने ज्योंही अपना हाथ पसारा कि वह पर्वतादिक से बिना रुके हुए बहुत दूर चला गया। इस तरह ऋद्धि की परीक्षा कर अपना बावन का रूप बनाकर, उन मन्त्रियों के पास, जो उस समय राजा थे, पहुँचे। वहाँ जाकर खूब वेदध्वनिकी और दक्षिणा में तीन पैंड पृथ्वी माँगी, राजाने स्वीकार कर लिया। मुनि ने अपना एक पैर सुमेरु पर रक्खा, दूसरा मानुषोत्तर पर्वत पर, तीसरा देव-गन्धों में क्षोभ पैदा कर राजा बलिकी पीठपर रख दिया। इस तरह सारी पृथ्वी अपने अधिकार में कर मुनियों का उपसर्ग दूर किया। वे मन्त्री लज्जित होकर मुनिसंघ के पैरों पर गिर पड़े और तबसे सम्यग्दृष्टि श्रायक हो गये। (१) आराधना कथाकोश (ब्र.नेमिदत्त अनु. उदयलाल कासलीवाल) प्रथम भाग - १२ वी कथा (२) प्रश्नोत्तर प्रावकाचार (सम्पत्प्च का याल्पल्य अंग) आठवाँ अधिकार-पृ. २३७ पंक्ति ७ (७) वज्रकर्ण सिंहोदर की कथा दशांगपुर नगर का राजा बज्रकर्ण बड़ा धर्मात्मा और साथुचरित पुरुष था। उसके यह प्रतिज्ञा थी कि मैं देव, शास्त्र, गुरुको छोड़कर अन्य किसी को नमस्कार नहीं करूंगा। अपनी प्रतिज्ञा के निर्वाह के लिए उसने अँगूठी में अरहतका एक छोरा सा प्रतिबिम्ब जड़वा लिया था। वह जब किसी को नमस्कार करता, तब उसी अंगूठी के प्रतिबिम्ब को धोक देता लेकिन मालूम ऐसा पड़ता कि सामने वाले आदमी को नमस्कार कर रहा है। यह अपने स्वामी राजा सिंहोदर के साथ भी यही व्यवहार करता था। उसका यह भेद किसी ने राजा सिंहोदर से कह दिया। सिंहोदरने क्रोध में आकर उसे पकड़ लानेके लिए सेना भेजी लेकिन वह अपने दुर्ग में जाकर छिपकर बैठ गया। सिंहोदर तब स्वयं युद्ध-साधनों से सज्जित होकर दशपुर नगर आया और एक दूत द्वारा वज्रकर्ण से कहलवाया कि 'वह शीघ्र मुझे आकर नमस्कार करे अन्यथा उसे उसकी ढीठताका फल भोगना होगा।' वज्रकर्ण ने ऐसा करने से इन्कार कर दिया। इस पर सिंहोदर ने उसका सारा नगर उजाड़ दिया। संयोग से उधर राम, लक्ष्मण और सीता घूमते हुए आ निकले और एक आदमी से नगर के उजड़ने का कारण जानकर वहीं ठहर गये। दूसरे दिन प्रातःकाल ही लक्ष्मण खाना लाने के लिए नगर में गये और सीधे वज्रकर्ण के यहाँ पहुँचे। वज्रकर्ण ने लक्ष्मण को आदरपूर्वक बड़े ही सुस्वादु व्यंजन दिये। लक्ष्मण उन्हें लेकर राम के पास आये। जब सब खा चुके तब रामचन्द्रजी ने लक्ष्मण से वज्रकर्ण की सहायता करने के लिए कहा। लक्ष्मण बिना कुछ हथियार लिये सिंहोदर के कटक में पहुंचे और वजकर्ण को छोड़ देने के लिये कहा। जब सिंहोदरने इन्कार किया तब दोनों ओर से युद्ध हुआ। युद्ध में लक्ष्मण ने सिंहोदर को पकड़ लिया और वज्रकर्ण से क्षमायाचना कराकर उसका राज्य लौटा दिया। -पद्मपुराण भाग २, सर्ग ३३ पृ. १०१-१२४ भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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