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________________ नवमा अधिकार-२७१ ट्रव्यलिंग (नग्न मुनि बाना) धारण किये बिना तीन काल में न किसी को मुक्ति हुई है, न होगी (भावप्राभृत गा. ७०) अतः द्रलिंग भी मुक्ति में कारण माना गया है (भा. पा. गाथा. ७०) भगवान महावीर के परम्परागत उपदेशों में उसे कारण कहा गया है। जेण विणा जं ण होदि चेव तं तस्स कारणं (थयल १४/६०) अर्थात् जिसके बिना जो नहीं हो वह उसका कारण है। ऐसा नहीं कि जिसके बिना जो नहीं हो तथा जिसके होने पर हो ही जाय; वही कारण है शास्त्रों में कारणों की विविध परिभाषाएँ बताई गई हैं; उनमें से एक को ग्रहण कर इतर को अमान्य करने वाला मिथ्यादृष्टि होता है। कहा भी है:- जिन भगवान की वाणी के एक अक्षर को भी जो अस्वीकार करता है-अमान्य करता है वह शेष सम्पूर्ण आगम को मानता हुआ भी मिथ्यादृष्टि है। भगवती आराधना ३६] यदि यह कहा जाय कि मात्र अंतरंग कारण से ही कार्य हो जाएगा सो भी बात नहीं है, क्योंकि “उपादानकारणं सहकारीकारणम् अपेक्षते" (स्व. स्तोत्र ६२ टीका) अर्थ- उपादान कारण सहकारी कारण की अपेक्षा रखता है। न हि किंचित स्वस्मादेव जायते (न्यायदीपिका २/४/२७) अर्थ- कोई भी वस्तु अपने से ही पैदा नहीं होती, किन्तु अपने से भिन्न कारणों से पैदा होती है। इससे विपरीत मान्यता रखने पर अनेक दोष प्राप्त होंगे। {परीक्षामुख ६/६३ तथा जयथवल १/२६५} अतः हे भव्य पुरुषो! द्रव्यलिंग भी मोक्ष का कारग है- आवश्यक कारण है। इतना अवश्य है कि वह भावलिंग के साथ ही कार्य (मोक्ष) का सम्पादन करता है। बहुरि केई कारण ऐसे हैं, जाके भए कार्यसिद्धि ही होय और जाके न भए सर्वथा कार्यसिद्धि न होय। जैसे सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र की एकता भए तो मोक्ष होय ही होय, अर ताको न भए सर्वथा मोक्ष न होय। ऐसे ए कारण कहे, तिनविष अतिशयकरि नियमते मोक्ष का साधक जो सम्यग्दर्शन-ज्ञानचारित्र का एकीभाव, सो मोक्षमार्ग जानना। इन सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान सम्यक्चारित्रनिविषै एक भी न होय तो मोक्षमार्ग न होय। सोई तत्त्वार्थसूत्रविष कह्या है सम्यग्दर्शनशानचारित्राणि मोक्षमार्गः ॥१॥ इस सूत्र की टीकाविषे कह्या है- जो यहाँ “मोक्षमार्ग:" ऐसा एक वचन कमा ताका अर्थ यह हैजो तीनों मिले एक मोक्षमार्ग है। जुदे-जुदे तीन मार्ग नाहीं हैं।
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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