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________________ सातवा अधिकार-२१८ है। ऐसे विचारि जो उपदेश सुन्या ताका निर्धार करनेका उद्यम किया। तहाँ उद्देश, लक्षणनिर्देश, परीक्षा द्वारकरि तिनका निर्धार होय। तातै पहले तो तिनके नाम सीखै सो उद्देश भया। बहुरि तिनके लक्षण जाने। बहुरि ऐसे सम्भवै है कि नाहीं, ऐसा विचार लिए परीक्षा करने लगे। तहाँ नाम सोखिलना अर लक्षण जानि लेना ये दोऊ तो उपदेशके अनुसार हो हैं। जैसे उपदेश दिया तैसे याद करि लेना। बहरि परीक्षा करनेविषे अपना विवेक चाहिए है। सो विवेककरि एकान्त अपने उपयोगविषै विचार, जैसे उपदेश दिया तैसे ही है कि अन्यथा है। तहाँ अनुमानादि प्रमाणकरि ठीक करै वा उपदेश तो ऐसे है अर ऐसे न मानिए तो ऐसे होय । सो इनविष प्रबल युक्ति कौन है अर निर्बल युक्ति कौन है। जो प्रबल भासै, ताको साँचा जानै। बहुरि जो उपदेश अन्यथा साँच भासै वा सन्देह रहै, निर्धार न होय तो बहुरि विशेष ज्ञानी होय तिनको पूछ । बहुरि वह उत्तर दे, ताको विचारै। ऐसे ही यावत् निर्धार न होय, तावत् प्रश्न उत्तर करै। अथवा समानबुद्धिके धारक होय, तिनको अपना विचार जैसा भया होय तैसा कहै। प्रश्न उत्तरकरि परस्पर चर्चा करै। बहरि जो प्रश्नोत्तरविषै निरूपण 'मया होय, ताको एकान्तविषै विचारै। याही प्रकार अपने अन्तरंगविषै जैसे उपदेश दिया था, तैसे ही निर्णय होय भाव न भासै, तावत् ऐसे ही उद्यम किया करै। बहुरि अन्यमतीनिकरि कल्पित तत्त्वनिका उपदेश दिया है, ताकरि जैन उपदेश अन्यथा भासै वा सन्देह होय तो भी पूर्वोक्त प्रकारकरि उद्यम करै। ऐसे उद्यम किए जैसे जिनदेव का उपदेश है तैसे ही साँच है, मुझको भी ऐसे ही भारी है, ऐसा निर्णय होय। जातें जिनदेव अन्यथावादी हैं नाही। यहाँ कोऊ कहै- जिनदेव जो अन्यथावादी नाहीं हैं तो जैसे उनका उपदेश है तैसे श्रद्धान करि लीजिए, परीक्षा काहेको कीजिए? ताका समाधान- परीक्षा किए बिना यहु तो मानना होय, जो जिनदेव ऐसे कह्या है सो सत्य है परन्तु उनका भाव आपको भासै नाहीं। बहुरि भाव भासे बिना निर्मल श्रद्धान न होय। जाकी काहू का वचन ही करि प्रतीति करिए, ताकी अन्यका वचनकरि अन्यथा भी प्रतीति होय जाय, तातें शक्तिअपेक्षा वचनकरि कीन्हीं प्रतीति अप्रतीतिवत् है। बहुरि जाका भाव भास्या होय, ताको अनेक प्रकारकरि भी अन्यथा न माने। तातें भाव भासे प्रतीति होय सोई सांची प्रतीति है। बहरि जो कहोगे, पुरुषप्रमाणते वचनप्रमाण कीजिए है, तो पुरुषकी भी प्रमाणता स्वयमेव तो न होय । वाकै केई वचननिकी परीक्षा पहले करि लीजिए, तब पुरुषकी प्रमाणता होय। यहाँ प्रश्न- उपदेश तो अनेक प्रकार, किस-किसकी परीक्षा करिए? ताका समाधान- उपदेशविषै केई उपादेय केई हेय केई ज्ञेय तत्त्व निरूपिए हैं। तहाँ उपादेय हेय तत्त्वनिकी तो परीक्षा करि लेना। जाते इन विष अन्यथापनो भए अपना बुरा हो है। उपादेयको हेय मानि लै तो बुरा होय, हेयको उपादेय मानि ले तो बुरा होय। बहुरि जो कहेगा- आप परीक्षा न करी अर जिनवचनही उपादेयको उपादेय जाने, हेयको हेय जानै तो यामें कैसे बुरा होय?
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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