SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 185
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मोक्षमार्ग प्रकाशक-१५८ ही मरण होहु या युगांतर विषे होहु परन्तु नीतिविष निपुण पुरुष न्यायमार्गत पैंडहु चले नाहीं। ऐसा न्याय विचारि निन्दा प्रशंसादिकका मयतें लोभादिकरौं अन्नाबाट निश्याच प्रवृत्ति करती गुल गाठी : अहो! क्षेत्र गुरु धर्म तो सर्वोत्कृष्ट पदार्थ हैं। इनके आधारि धर्म है। इन विषै शिथिलता राखै अन्य धर्म कैसे होई तात्तै बहुत कहनेकरि कहा, सर्वथा प्रकार कुदेव कुगुरु कुधर्मका त्यागी होना योग्य है। कुदेवादिकका त्याग न किए मिथ्यात्व भाव बहुत पुष्ट हो है। अर अवार इहां इनकी प्रवृत्ति विशेष पाईए है। तातै इनिका निषेधरूप निरूपण किया है। ताको जानि मिथ्यात्व भाव छोड़ि अपना कल्याण करो। इति मोक्षमार्गप्रकाशकशास्त्रविषै कुदेय-कुगुरु-कुधर्मनिषेध वर्णन रूप छठा अधिकार समाप्त भया ।।६ ।। 听听听
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy