SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 14
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचार्यकल्प पं. टोडरमल जी का | मनानi narIPIRATI जीवन परिचय महाकवि आशाधर के अनुपम व्यक्तित्व की तुलना करनेवाला व्यक्तित्व आचार्यकल्प पं. टोडरमल जी का है। इन्हें प्रकृतिप्रदत्त स्मरणशक्ति और मेधा प्राप्त थी । एक प्रकार से ये स्वयंबुद्ध थे । इनका जन्म जयपुर में हुआ था । पिता का नाम जोगीदास और माता का नाम रमा या लक्ष्मी था । इनकी जाति खण्डेलवाल और गोत्र गोदीका था । ये शैशव से ही होनहार थे । गृढ़-से-गृढ़ शंकाओं का समाधान इनके पास मिलता था । इनकी योग्यता एवं प्रतिभा का ज्ञान तत्कालीन साधर्मी भाई रायमान ने इन्द्रध्वज पूजा के निमंत्रण पत्र में जो उद्गार प्रकट किये हैं उनसे स्पष्ट हो जाता है । इन उद्गारों को न्यों-का-त्यों दिया जा रहा है "यहाँ घणां भायां और धणी बायां के व्याकरण व गोम्मटसार जी की चर्चा का ज्ञान पाइए हैं । मारा ही विर्षे भाई जी टोडरमल जी के ज्ञान का क्षयोपशम अलौकिक है, जो गोम्मटसागदि गंधों की सम्पूर्ण लाख श्लोक टीका बणाई, और पाँच-सात ग्रंथों की टीका बणायवे का उपाय है । न्याय, व्याकरण, गणित, छंद, अलंकार का यदि ज्ञान पाइये है । ऐसे पुरुष महन्त बुद्धि का धारक इंकाल विर्ष होना दुर्लभ है । ताते यासू पिले सर्व सन्देह दूरि होय है । घणी लिखवा कर कहा आपणां हेत का वांछीक पुरुष शीघ आप यांसू मिलाप करो।" इस उद्धरण से स्पष्ट है कि टोडरमलजी महान् विद्वान् थे । वे स्वभाव से बड़े नम्र थे । अहंकार उन्हें छ तक न गया था। इन्हें एक दार्शनिक का मस्तिष्क, श्रद्धालु का हृदय, साधु का जीवन और सैनिक की दृढ़ता मिली थी। इनकी वाणी में इतना आकर्षण था कि नित्य सहस्रों व्यक्ति इनका शास्त्र प्रवचन सुनने के लिए एकत्र होते थे। गृहस्थ होकर भी गृहस्थी में अनुरक्त नहीं थे। अपनी साधारण आजीविका कर लेने के बाद शास्त्रचिन्तन में रत रहते थे। उनकी प्रतिमा विलक्षण थी । इसका एक प्रमाण यही है कि इन्होंने किसी से बिना पढ़े ही कन्नड़ लिपि का अभ्यास कर लिया था। अब तक के उपलब्ध प्रमाणों के आधार पर इनका जन्म वि. सं. १७९७ है और मृत्यु सं. १८२४ है । टोडरमल जी आरंभ से ही क्रान्तिकारी और धर्म के स्वच्छ स्वरूप को हृदयंगत करनेवाले थे । इनकी शिक्षा-दीक्षा के सम्बन्ध में विशेष आनकारी नहीं है, पर इनके गुरु का नाम वंशीधर जी मैनपुरी बतलाया जाता है । वह आगरा से आकर जयपुर में रहने लगे थे और बालकों को शिक्षा देते थे । टोडरपल बाल्यकाल से ही प्रतिभाशाली थे। अतएव गुरु को भी उन्हें स्वयबुद्ध कहना पड़ा था । वि. सं. १८११ फाल्गुन शुक्ला पंचमी को १४-१५ वर्ष की अवस्था में अध्यात्मरसिक मुलतान के भाइयों के नाम चिट्ठी लिखी थी, जो शास्त्रीय चिट्ठी है । राजस्थान के उत्साही विद्वान पंडित देवीदास गोधा ने अपने सिद्धान्तसार संग्रह वचनिका ग्रंथ में इनका परिचय देते हुए लिखा “सो दिल्ली पढ़िकर बसुवा आय पाछै जयपुर में थोड़ा दिन टोडरमल्लजी महा बुद्धिमान के पासि शास्त्र सुनने को मिल्या..........सो टोडरमलजी के श्रोता विशेष बुद्धिमान दीवान, रतनचन्दजी, अजबरायजी, तिलोकचन्दजी याटणी, महारामजी, विशेष चरचाबान ओसवाल, क्रियावान उदासीन तथा तिलोकचन्द सौगाणी, नयनचन्दजी पाटनी इत्यादि टोडरपलजी के श्रोता विशेष बुद्धिमान तिनके आगे शास्त्र का तो व्याख्यान किया !" इस उद्धरण से टोडरमलजी की शास्व-प्रवचन शक्ति एवं विद्वता प्रकट होती है । आरा सिद्धान्त भवन में संगृहीत शान्तिनाथपुराण की प्रशस्ति में टोडरमलजी के सम्बन्ध में जो उल्लेख मिलता है उससे उनके
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy