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________________ 卐 पाँचवाँ अधिकार विविध मत-समीक्षा बहुविधि मिथ्या ग्रहनकरि, मलिन भयो निज भाव । ताको होत अभाव है, सहजरूप दरसाव।।१।। अथ यहु जीव पूर्वोक्त प्रकारकरि अनादिही मिथ्यादर्शनज्ञानचारित्ररूप परिणमे है ताकरि संसारविषै दुःख सहतो संतो कदाचित् मनुष्यादि पर्यायनि विषै विशेष श्रद्धानादि करने की शक्ति को पावै। तहाँ जो विशेष मिथ्या श्रद्धानादिकके कारणनिकरि तिन मिथ्या श्रद्धानादिकको पोषै तो तिस जीयका दुःखते मुक्त होना अति दुर्लभ हो है। जैसे कोई पुरुष रोगी है सो किछू सावधनीको पाय कुपथ्य सेवन करै तो उस रोगी का सुलझना कठिन ही होय । तैसे यह जीव मिथ्यात्वादि सहित है सो किछू ज्ञानादि शक्तिको पाय विशेष विपरीत श्रद्धानादिकके कारणनिका सेवन करै तो इस जीव का मुक्त होना कठिन ही होय। तातै जैसे वैद्य कुपथ्यनिका विशेष दिखाय तिनके सेवनको निषेथै तैसे ही इहाँ विशेष मिथ्याश्रद्धानादिक के कारणनिका विशेष दिखाय तिनका निषेध करिए है। इहाँ अनादित जे मिथ्यात्वादि भाव पाइए हैं ते तो अगृहीतमिथ्यात्वादि जानने, जाते ते नवीन ग्रहण किए नाहीं। बहुरि तिनके पुष्ट करने के कारणनिकरि विशेष मिथ्यात्वादिभाव होय ते गृहीतमिथ्यात्वादि जानने तहाँ अगृहीतमिथ्यात्यादिकका तो पूर्वे वर्णन किया है सो ही जानना अर गृहीतमिथ्यात्यादिकका अब निरूपण कीजिए है सो जानना। गृहीत मिथ्यात्व का निराकरण कुदेव कुगुरु कुथर्म अर कल्पिततत्त्य तिनका श्रद्धान सो तो मिथ्यादर्शन है। बहुरि जिन विषै विपरीत निरूपणकरि रागादि पोषे होय ऐसे कुशास्त्र तिनविषै श्रद्धानपूर्वक अभ्यास सो मिथ्याज्ञान है बहुरि जिस आचरणविषै कषायनिका सेवन होय अर ताको धर्म रूप अंगीकार करै सो मिथ्याचारित्र है। अब इनहीका विशेष दिखाइए है-इन्द्र लोकपाल इत्यादि, बहुरि अद्वैत ब्रह्म, राम, कृष्ण, महादेव, बुद्ध, खुदा, पीर, पैगम्बर इत्यादि; बहुरि हनुमान, भेरू, क्षेत्रपाल, देवी, दिहारी, सती, इत्यादि; बहुरि गऊ, सर्प इत्यादि, बहुरि अग्नि, जल, वृक्ष इत्यादि; बहुरि शस्त्र, दावात, बासण इत्यादि अनेक तिनका अन्यथा श्रद्धानकर नीको पूजै । बहुरि तिनकरि अपना कार्य सिद्ध किया चाहै सो वे कार्य सिद्धिके कारण नाहीं, ताते ऐसे श्रद्धानको गृहीतमिथ्यात्व कहिए है। तहाँ तिनका अन्यथा श्रद्रान कैसे हो है सो कहिए है
SR No.090284
Book TitleMokshmarga Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJawaharlal Shastri, Niraj Jain, Chetanprakash Patni, Hasmukh Jain
PublisherPratishthacharya Pt Vimalkumar Jain Tikamgadh
Publication Year
Total Pages337
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, & Religion
File Size10 MB
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