SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 695
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आराधनास्तवनम् ईद-शार्दूलया सर्वानवरोधिनी कलिमलं दूरं निरस्यांगजम् । संद्ध चारुपवं नयेवगुणवतो भव्यात्मनो वांछितम् ॥ चक्रेशाविसुखं सुरैरभिनुतं संयोज्य संन्यस्यतां । सा वः स्यान्मुनिहंससेवितरसा देवापगाराधना ॥१९॥ शार्दूलया शोलोज्ज्वलपुष्पगंधसुभगा सदध्यानसत्पल्लवा । भास्पदशनसंभवा वरतपः पत्रोच्चयेनांचिता॥ सम्यग्वृत्तालसन्महाफलवती भव्यालिझंकारिता । सा वो मानसमूतले प्रसरतादाराधनावल्लरी ॥२०॥ . शार्दूलया श्रीमच्छ तशीलनीरकलिता निर्वाणदानक्षमा । याऽपुण्यांबुधितारिणी शुचितया रंगत्तरंगाकुला ।। या निर्धू य कलेवराणि महतः संस्थापयेत्सत्सुखे । सा वो मंगलमातनोतु नितरामाराधनास्वधुंनो ॥२१॥ - . -- -- - - ऐसा पद देती है, चक्रवर्ती आदिका सुख देती है, मुनिजन रूप हंसों द्वारा सेवित ऐसी यह आराधना गंगा आपको प्राप्त होवे ।।१९।। यह आराधना रूपी लता शीलरूप उज्ज्वल सफेद सुगन्धित पुष्पोंसे मनोहर है, धर्म्यध्यान शुक्लध्यानरूप पल्लवोंसे युक्त, सम्यग्दर्शन रूप बीजसे उत्पन्न उत्कृष्ट तपरूपी पत्रसमूहसे भरी, सम्यक् चारित्ररूप महाफलबाली, भव्यरूपी भ्रमरोंके झंकारसे व्याप्त ऐसी यह आराधनावेल आपके मानस भूमिपर फैले ।।२०।। यह आराधना गंगा श्रुतज्ञान और हीलरूप पानी से भरी है, मोक्ष देने में समर्थ है, पुण्य समुद्रको प्राप्त होतो है, पवित्र है, ध्यानरूप तरंगोंसे व्याप्त है, सत्पुरुषों के शरीरोंको नष्ट करके उनको मोक्षसुख में स्थापित करती है ऐसी आराधना गंगा तुम्हारा मंगल करे ॥२१॥ यह आराधना रूप अंबिकादेवी मोहासुरका पराजय करके विजयी हुई है, इसकी भक्ति करनेवाले पुरुषोंको सर्व इष्ट पदार्थोकी प्राप्ति होती
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy