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________________ बालमरणाधिकार [ १७ नकमप्यक्षरं येन, रोच्यते तत्त्वदशितम । स शेषं रोचमानोऽपि, मिश्यादृष्टिरसंशयम् ॥४२॥ मोहोदयाकुलंस्तत्त्वं, तथ्यमुक्त न रोचते ।। जागुरुणानुक्त गा, व शेबसे ।।३३॥ मिथ्यात्वं वेदयन्नंगी, न तत्त्वे कुरुते रुचिम् । कस्मैपित्तज्वरालय, रोचते मधुरो रसः ।।४४।। अनेना श्रद्दधानेन, जिनवाक्यमनेकशः । बालबालमतिः प्राप्ता, कालेऽतीते यतोऽङ्गिना ॥४५।। इवमेय वचो जैन मनुत्तममकल्मषम् । निर्ग्रन्थं मोक्षवमति, विधेया धिषणा ततः ।।४।। अर्थ-तत्त्वार्थ के प्रतिपादक अक्षर समुदाय में से एक अक्षर का भी यदि अश्रद्धान किया जाता है तो वह व्यक्ति निश्चय से मिथ्यादृष्टि हो जाता है, भले ही वह शेष अक्षरों पर श्रद्धा करता हो ।।४२॥ भावार्थ-एक बड़े पात्र में मधुर दूध रखा है, उसमें एक ही विषकी बूद पड़ जाय तो सारा दूध विषैला बनकर प्राणघातक हो जाता है, ठोक ऐसे ही समस्त शास्त्रों में श्रद्धा युक्त होने पर भी एक अक्षर पर अविश्वास हो जाय तो वह मिथ्याष्टि बन जाता है। अर्थ-मिथ्यात्वकर्म के उदय से आकुलित चित्त बाले को जिनेन्द्र प्रणीत वास्तविक तत्त्व रुचिकर नहीं होता है और इससे विपरीत अवास्तविक तत्त्व उसे रुचिकर लगता है ॥४३।। अर्थ-मिथ्यात्व का वेदन करने वाले जीवको तत्त्व रुचिकर उस प्रकार नहीं लगता जिसप्रकार पित्तज्वर वाले को मीठा रस रुचिकर नहीं लगता ॥४४॥ ____ अर्थ-जिस जीव ने जिनेन्द्र वचन की श्रद्धा नहीं की उस जीव ने अतीत काल में अनेक बार बाल बाल मरण प्राप्त किये हैं ।।४५।। अर्थ-इसप्रकार मिथ्यात्व का कटक फल जानकर भव्य जीवों को ऐसी श्रद्धा एवं बुद्धि करनी चाहिये कि यह जिन वचन ही उत्तम है निर्दोष पाप रहित है तथा निर्ग्रन्थ मोक्षमार्ग स्वरूप है ।।४६।।
SR No.090280
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorJinmati Mata
PublisherNandlal Mangilal Jain Nagaland
Publication Year
Total Pages749
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size17 MB
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