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________________ मरणकण्डिका - ७३ ९. श्रति अधिकार भाव श्रिति एवं द्रव्य थिति का लक्षण उपर्युपरि शुद्धेषु गुणेष्वारुह्यते यया । भावश्रितिरभाष्येषा, विशुद्धाजीव - वासना ॥ १७९ ॥ मन्दिरादिषु तुगेषु, सुखेनारुह्यते यया । द्रव्यश्रितिर्मता प्राज्ञैः, सा सोपानादि-लक्षणा ॥ १८० ॥ अर्थ- जीव के जिन भावों से रत्नत्रय की उन्नति के हेतुभूत सम्यक्त्वादि गुणों में प्रतिदिन ऊपर-ऊपर शुद्धि वृद्धिंगत होती रहती है, उन भावों को भावश्रिति कहते हैं। अथवा जीव के रत्नत्रय रूप विशुद्ध परिणामों को भावश्रिति कहते हैं ॥ १७९ ॥ मन्दिर आदि उच्च स्थानों पर जिसके द्वारा सुखपूर्वक चढ़ा जाता है वह सोपानरूप द्रव्यथिति है ऐसा प्राज्ञ पुरुषों ने कहा है ॥ १८० ॥ शरीरादिरूप द्रव्य श्रिति का त्याग और रत्नयरूप भावनिति का ग्रहण मधितिंगर, भावनितमधिश्रितः चारित्रे चेष्टतां शुद्धे, त्यक्तुकामः कलेवरम् ॥ १८१ ॥ अर्थ - शरीर का त्याग करने में समुत्सुक मुनिराज को द्रव्यनिति का त्याग कर भावत्रिति का आश्रय लेना चाहिए और शुद्ध चारित्र में चेष्टा करनी चाहिए ॥ १८१ ॥ द्रव्यभावश्रिति ज्ञानाः, सन्त्युत्तर पदोद्यताः । नरोधः प्रशंसन्ति, पदमूर्ध्वं यियासवः ।। १८२ ।। अर्थ - द्रव्यथिति और भावश्रिति के स्वरूप को विशेषरूप से जाननेवाले महापुरुष उपरिम-उपरिम पद अर्थात् रत्नत्रय की उन्नति के लिए ही उद्यमशील रहते हैं, क्योंकि ऊर्ध्व पद में गमन के इच्छुक पुरुष नीचे-नीचे के पदों की प्रशंसा नहीं करते ।। १८२ ।। प्रश्न- द्रव्यनिति और भावविति के क्या लक्षण हैं और उपरिम पद के लिए उद्यमशीलता आदि का क्या अभिप्राय है? उत्तर - जैसे सीढ़ी या नसैनी ऊपर चढ़ने का साधन है और ऊपर पहुँच जाना उसका फल है। उसी प्रकार द्रव्यनिति रूप शरीर, आहार एवं पीछी- कमण्डलु आदि साधन हैं और भावनिति रूप रत्नत्रय की विशुद्धता साध्य है। अर्थात् शरीर द्रव्यनिति है और सम्यक्त्व आदि गुण भावश्रित हैं। सल्लेखनात किन्तु शरीर से विरक्त मुनिराज अपनी सल्लेखना की सिद्धि हेतु प्रत्येक पर्याय में सुलभ, अपवित्र, असार, कृतघ्न, भाररूप, रोगों के खजाने, जन्म-मरण के माध्यम और अत्यन्त दुखदायी शरीर से निस्पृह होकर सोना, उठना, बैठना, आहार -पान आदि की सर्वसुख भावनाओं के अनुरूप द्रव्यनिति को छोड़कर,
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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