SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 642
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरणकण्डिका - ६१८ सादि-णक्खने जदि संथारं गिण्हदि तदा रेवदि-णक्खने पभादे मरदि॥१५ ।। अर्थ - क्षपक यदि स्वाति नक्षत्र में शय्या ग्रहण करता है तो रेवती-नक्षत्र में प्रभात वेला में मरण होगा ।।१५।। विसाह-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि तदा असिलेसा णक्खत्ते मरदि॥१६॥ अर्थ - क्षपक यदि विशाखा नक्षत्र में शय्या ग्रहण करता है तो आश्लेषा नक्षत्र में मरण होगा ॥१६॥ असिलेसा-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि तदा पब्वभद्द-णक्खने दिवसे मरदि॥१७॥ अर्थ - क्षपक यदि आश्लेषा नक्षत्र में शय्या ग्रहण करता है तो पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र के उदित रहते दिन में मरण होगा॥१७॥ मूल-णक्खत्ते जदि संस्थारं गिण्हदि तदा जेट्टा-णखत्ते पमाद-बेलाए मरदि ॥१८॥ क्षपक यदि मूल नक्षत्र में शय्या ग्रहण करता है तो ज्येष्ठा नक्षत्र में प्रभात बेला में उसका मरण होगा॥१८॥ पुव्वासाढ-णखत्ते जदि संथारं गिण्हदि तदा मियसिर-णक्खत्ते पदोस-बेलाए मरदि ॥१९ ।। अर्थ - पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में यदि क्षपक शय्या ग्रहण करता है तो मृगशिरा नक्षत्र पर पूर्वरात्रि के समय उसका मरण होगा ॥१९॥ उत्तरासाढणखत्ते जदि संथारं गिण्हदि तदा तहिवसे चेव अहवा भद्दपद-णक्रुत्ते अवरण्हे मरदि ॥२०॥ अर्थ - क्षपक यदि उत्तराषाढ़ानक्षत्र में शय्या ग्रहण करता है तो उसी दिन अथवा भाद्रपद नक्षत्र में अपराह्न वेला में उसका मरण होगा।।२०।। सवण-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि तदा उत्तरभद्दपद-णक्खत्ते तहिवसे कालं करेदि॥२१॥ अर्थ - क्षपक यदि श्रवण नक्षत्र में शय्या ग्रहण करता है तो उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में ही अर्थात् उसी दिन मरण होगा ॥२१॥ धणिट्ठा-णक्खते जदि संथारं गिण्हदि तदा तद्दिवसे कालं करेदि, जदि तद्दिवसे कालं ण करेदि तदा पुण-तहिवसे चेव आगदे मर्रादे॥२२॥ अर्थ - क्षपक यदि धनिष्ठा नक्षत्र में शय्या ग्रहण करता है तो उसी दिन मरण होगा। यदि उसी दिन मरण न हुआ तो पुनः जब वही नक्षत्र आवेगा तब मरण होगा ।।२२ ।। सदभिस-णक्खते जदि संधारं गिण्हदि तदा जेठा-णक्खत्ते अथवण-बेलाए मरदि ॥२३ ।। अर्थ - क्षपक यदि शतभिषा नक्षत्र में शय्या ग्रहण करता है तो ज्येष्ठा नक्षत्र पर सूर्यास्त की बेला में उसका मरण होगा ।।२३॥ पुन्वभद्दपद-णक्खत्ते जदि संथारं गिण्हदि तदा पुण्णवसु-णखत्ते रत्तिं मरदि॥२४॥ अर्थ - क्षपक यदि पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र में संस्तर ग्रहण करता है तो पुनर्वसु नक्षत्र पर रात्रि में उसका मरण होगा ॥२४॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy