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________________ रण.. कार अर्थ - जो सौभाग्य प्रदान करती है, भक्तिपूर्वक सेवित किये जाने पर संसार का छेद कर देती है, मोहरूपी दैत्य को पछाड़ देती है, संसारी जीवों के भय को नष्ट कर देती है और जिसे प्राप्त न कर सकने से यह जीव अद्यावधि विकार भावरूप भयानक पर्वतों से युक्त इस संसाररूपी वन में अद्यावधि भ्रमण कर रहा है ऐसी वह महाकल्याणकारी भगवती आराधना आपके अनेक वैभव उत्पन्न करने वाली हो॥४॥ या काम-क्रोध-लोभ-प्रभृति-बहुविध-ग्राह-नक्रावकीर्णा। संसारापार-सिन्धोर्भव-मरण-जरावर्त-गर्गदुपेत्य ॥ गच्छत्युत्तीर्य सिद्धिं सपदि भव-भृत: शाश्वतानन्त-सौख्यम्। भव्यैराराधनानोर्गुणगण-कलिता नित्यमारुहातां सा॥५।। अर्थ - यह संसार रूप अपार समुद्र काम, क्रोध तथा लोभ आदि बहुत प्रकार के ग्राह और नक्ररूप क्रूर जलचर जन्तुओं से व्याप्त है एवं इसमें जन्म, मरण तथा जरारूप आवों के गर्त हैं, संसारी जीव अनादि काल से इन गर्मों में गिरे पड़े हैं, इन गर्मों से निकालने का सामर्थ्य मात्र आराधना रूप नौका में है, यह नौका गुणसमूह से भरी हुई है और भव्य जीवों को शीघ्र ही इन दुखमय गर्मों से निकाल कर शाश्वत-आनन्द तथा सुख रूप सिद्धि प्राप्त करा देती है अतः ऐसी नौका पर भव्य जीव नित्य ही आरोहण करें। अर्थात् इस उत्तम आराधना को धारण करें ॥५॥ या मैत्री ख्याति-कान्ति-द्युति-मति-सुगति-श्री-विनीत्यादि-कान्ताम् । संयोज्योपार्जनीयामवहित-मतिभिर्मुक्तिकान्तां युनक्ति । मुक्ताहाराभिरामा मम मद-शमनी सम्यगाराधनाली। भूयाम्नेदीयसी सा विमलित-मनसां साधयन्तीप्सितानि ॥६॥ अर्थ - यह भगवती आराधना, सेवा करने वाले अपने भव्य सेवक जनों का मैत्री, यश, कान्ति, शोभा, सुबुद्धि, सुगति, सम्पत्ति एवं नम्रता आदि रूप उत्तम अनेक स्त्रियों के साथ समागम करा देती है और अन्त में अवश्यमेव प्राप्त करने योग्य ऐसी मुक्ति रूपी स्त्री का भी मिलन करा देती है। यह सम्यगाराधना मोतियों की माला सदृश सुन्दर है, मेरे मद को शान्त करने वाली है अत: निर्मल मन वाले भव्यों के इच्छित पदार्थों का साधन करती हुई यह आराधना रूप उत्तम सखी सदैव मेरे समीप रहे ॥६ ।। स्वान्तस्था या दुरापा नियमित-करणा सृष्ट-सर्वोपकारा । माता सर्वाश्रमाणां भव-मथन-पराऽनङ्ग-सङ्गापहारा॥ सत्या चित्तापहारी बुध-हित-जननी ध्वस्त-दोषाकर-श्रीः । दद्यादाराधना सा सकलगुणवती नीरजा व: सुखानि ॥७॥ अर्थ - अत्यन्त दुर्लभ यह भगवती आराधना भव्य जीवों के मन में स्थित हो जाने पर उनकी इन्द्रियों को नियन्त्रित करती है, उनका सब प्रकार से उपकार करती है, यह आराधना देवी ब्रह्मचर्यादि समस्त गुणरूपी आश्रमों की माता है, भव का मथन करने वाली है, काम एवं परिग्रह का तिरस्कार करने वाली है, सत्यस्वरूपा है, संताप की अपहीं है, बुधजनों के हित को उत्पन्न करने वाली है, दोषों के समूह की विध्वंसिनी है, सकलगुणों की खान है और पाप रहित है, ऐसी आराधना आपके लिए सर्व सुख प्रदान करे ॥७॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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