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________________ ! Q मरणकण्डिका - ५८९ हैं वे भोग, सौख्य और सुन्दरता की चरम सीमा को स्पर्श करने वाले ऐसे सौधर्मादि कल्पोपपन्न वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं ।। ११५९ ॥ एकदा शुभमना विषद्यते, बालपण्डित-मृर्ति समेत्य यः । स प्रपद्य नर-देव- सम्पदं, सप्तमे भवति निर्वृतो भव ।। २१६० ।। इति बालपण्डितम् । अर्थ - जो शुभमना अर्थात् विशुद्ध परिणाम वाला देशव्रती एक बार या एक भव में भी बालपण्डितमरण को ग्रहण कर लेता है वह उत्तम मनुष्य एवं देव सम्बन्धी अभ्युदय सुखों को भोग कर सातवें भव में मोक्ष चला जाता है ।।२१६० ॥ प्रश्न- पण्डितरण पद के पूर्व आया है? लक्षण क्या है और इसके स्वामी कौन-कौन हैं ? उत्तर - बालपण्डित में बाल शब्द का अभिप्राय है कि यह जीव पूर्ण संयमी नहीं है और पंडित शब्द इसलिए है कि उसके सम्यक्त्व सहित एकदेश संयम है। इन जीवों के मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी एवं अप्रत्याख्यान कषायों का उदय नहीं रहता, शेष प्रत्याख्यानादि का उदय होता है। पहली प्रतिमा से ग्यारहवीं प्रतिमा पर्यन्त के सब जीव अर्थात् ऐलक, क्षुल्लक, क्षुल्लिका एवं प्रतिमाधारी सभी ब्रह्मचारी, ब्रह्मचारिणी और व्रती श्रावकश्राविकाएँ इस मरण के स्वामी हैं। ये सभी सम्यग्दृष्टि जीव पंचम गुणस्थान में वर्तन करते हुए आहार एवं कषायभावों का त्याग करते हुए जो मरण करते हैं उसे बालपंडितमरण कहते हैं । प्रश्न - आर्यिका का कौनसा मरण होता है ? उत्तर - स्त्रियों के लिंग का विवेचन करते हुए शिवकोटि आचार्य कहते हैं कि इत्थीवि य जं लिंगं, दिट्ठे उस्सग्गियं व इदरं वा । तं तत्थ होदि हु लिंगं, परित्तमुषधिं करेंतीए ॥ ८० ॥ अर्थात् आर्यिकाओं के औत्सर्गिक और क्षुल्लिकादि श्राविकाओं के आपवादिक लिंग होता है। भक्तप्रत्याख्यानमरण के समय भी उनके यही औत्सर्गिक लिंग होता है। वसुनन्दी आचार्य ने अपनी टीका में प्रश्न उठाया है कि स्त्रीणां उत्सर्गलिंगं कथं निरूप्यते ? अर्थात् स्त्रियों के औत्सर्गिक लिंग कैसे कहा ? तब आप ही उत्तर देते हैं कि अल्पं परिग्रहं कुर्वत्याः । परिग्रह अल्प कर देने से आर्यिकाओं के भी औत्सर्गिक लिंग होता है। अर्थात् ममत्व भाव न होते हुए भी पर्यायजन्य विवशता से वे एक साड़ी रखती हैं और मरण के समय उसका भी त्याग कर देती हैं। अत: उनके औत्सर्गिक लिंग कहा गया है। इस कथन से सिद्ध होता है कि एक साड़ी होते हुए भी अर्थात् संयमासंयम गुणस्थान होते हुए भी उनका रत्नत्रय अथवा परिणाम विशुद्धि ऐलक - क्षुल्लकादि से उत्कृष्ट है। आर्यिकाओं के कौनसा मरण होता है ? इसका स्पष्ट विवेचन कहीं आगम में अद्यावधि मेरे देखने में नहीं आया अतः विद्वज्जनों द्वारा यह विषय चिन्तनीय है।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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