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________________ मरणकण्डिका - ५७१ प्रकृत का उपसंहार एवं आगे किये जाने वाले कथन की सूचना भक्तत्याग: सवीचारो, विस्तरेणेति वर्णितः। अधुना तमवीचार, वर्णयामि समासतः ।।२०८४ ।। इति भक्तत्यागः। अर्थ - इस प्रकार यहाँ तक सवीचार अर्थात् विचार पूर्वक किये जाने वाले भक्तप्रत्याख्यान का विस्तार पूर्वक वर्णन किया, अब आगे अवीचार भक्त प्रत्याख्यान मरण का संक्षेप से वर्णन करते हैं ।।२०८४ ॥ प्रश्न - भक्तप्रत्याख्यान मरण के कितने भेद हैं और सवीचार भक्तप्रत्याख्यान का क्या लक्षण है? उत्तर - भक्तप्रत्याख्यान मरण के दो भेद हैं। सवीचार भक्त-प्रत्याख्यान और अवीचार भक्त-प्रत्याख्यान । जिनकी आयु अभी शीघ्र समाप्त होने वाली नहीं है और जो कुछ कारण विशेष से समाधि के लिए उपस्थित हो रहे हैं वे ज्ञानी मुनिजन क्रमशः कषाय एवं आहार को कृश करते हुए जो विधि ग्रहण करते हैं, उसे सवीचार भक्त त्याग कहते हैं। यहाँ तक इसका सविस्तार वर्णन किया गया है। (१०) अवीचार भक्तत्याग, इंगिनी एवं प्रायोपगमनाधिकार अवीचार भक्त प्रत्याख्यान का लक्षण एवं भेद भक्तत्यागोस्त्यवीचारो, निश्चेष्टस्य दुरुत्तरे। सहसोपस्थिते मृत्यौ, योगिनो वीर्य-धारिणः ॥२०८५॥ अर्थ - जिसका रोक सकना कठिन है और जो दूर करने के सामर्थ्य के बाहर है ऐसे भयंकर रोग या उपसर्ग के निमित्त अकस्मात् मरण उपस्थित हो जाने पर वीर्यसम्पन्न साधुजन तत्काल जिस मरण को स्वीकार कर लेते हैं उसे अवीचार भक्त प्रत्याख्यान मरण कहते हैं।।२०८५ ॥ निरुद्धं प्रथमं तत्र, निरुद्धतरमूचिरे। द्वितीयं तु तृतीयं च, निरुद्धतममुत्तमाः॥२०८६॥ अर्थ - गणधरादि उत्तम ऋषियों ने अवीचार भक्तप्रत्याख्यान के तीन भेद कहे हैं । पहला निरुद्ध, दूसरा निरुद्धतर और तीसरा परमनिरुद्ध ॥२०८६ ।। निरुद्ध अवीचार भक्तप्रत्याख्यान का कथन निरुद्धं कथितं तस्य, रोगातङ्कादि-पीडितम् । जवाबल-विहीनो यः, पर-सङ्घ-गमनाक्षमः ।।२०८७ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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