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________________ मरणकण्डिका -५५० अर्थ – अन्तरंग की विशुद्धि से गाई ल्यायों की मदत होने पर जीव नियतः जाह्य परिग्रह छोड़ देता है क्योंकि अन्तरंग में मलिनता होने पर ही जीव बाह्य परिग्रहों को ग्रहण करता है ।१९९७ ।। अन्तर्विशुद्धितो जन्तोः, शुद्धिः सम्पद्यते बहिः। बाह्यं हि कुरुते दोष, सर्वमान्तर-दोषतः ।।१९९८ ।। अर्थ - जीवों के अन्तरंग की विशुद्धि होने पर नियमत: बाह्य विशुद्धि हो जाती है क्योंकि अन्तरंग दूषित होने पर जीव सर्व बाह्य दोष करता है। अर्थात् कषायों की मन्दता रूप निर्मल परिणाम होने पर बाह्य हिंसा-झूठादि दोष होना सम्भव नहीं हैं किन्तु यदि अभ्यन्तर परिग्रह की आसक्ति से मलिन है तो शरीर और वचन सम्बन्धी मलिनता होगी ही होगी ।।१९९८ ।। ससङ्गस्याङ्गिनः कर्तु, लेश्या-शुद्धिर्न शक्यते। अन्तराशोध्यते केन, तुष-युक्तोऽपि तन्दुलः ।।१९९९ ।। अर्थ - परिग्रही मनुष्य के लेश्याओं की शुद्धि होना शक्य नहीं है, क्या बाह्य छिलके से युक्त चावल की अभ्यन्तर ललाई रूप मलिनता किसी के भी द्वारा दूर करना शक्य है ? नहीं ॥१९९९ ।। लेश्या के आश्रय से आराधक के भेद शुक्ललेश्योत्तमांशं, यः प्रतिपद्य विपद्यते। उत्कृष्टाराधना तस्य, जायते पुण्य-कर्मणः ।।२००० ॥ अर्थ - जो क्षपक शुक्ल लेश्या के उत्कृष्ट अंशों को प्राप्त कर अर्थात् तत् रूप परिणत होकर मरण करता है वह पुण्यात्मा उत्कृष्ट आराधक होता है अर्थात् उसकी आराधना उत्कृष्ट होती है।।२०००॥ शेषांशान् शुक्ललेश्यायाः, पद्मायाश्च तथा श्रितः । म्रियते मध्यमा तस्य, साधोराराधना मता ॥२००१॥ अर्थ - शुक्ललेश्या के शेष मध्यम और जघन्य अंशों का तथा पद्मलेश्या के उत्कृष्ट, मध्यम एवं जघन्य अंशों का आश्रय लेकर संन्यास मरण करने वाले क्षपक की मध्यम आराधना होती है अर्थात् वह मध्यम आराधक होता है।॥२००१॥ तेजो-लेश्यामधिष्ठाय, क्षपको यो विपद्यते। जघन्याराधना तस्य, वर्णिता पूर्व-सूरिभिः ॥२००२॥ अर्थ - पूर्वाचार्यों ने कहा है कि जो क्षपक पोत लेश्या में स्थित होकर संन्यास मरण करता है उसकी जघन्याराधना होती है अर्थात् वह जघन्य आराधक होता है ।।२००२।। प्रतिपद्य तपोवाही, यो यां लेश्यां विपद्यते। तल्लेश्ये जायते स्वर्गे, तल्लेश्य: स सुरोत्तमः ॥२००३।। अर्थ - जो तपस्वी क्षपक जिस-जिस लेश्या से परिणत होकर मरण करता है, वह उसी लेश्या वाले स्वर्ग में उसी लेश्या का धारक उत्तम देव होता है ।।२००३ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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