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________________ मरणकण्डिका-४४० वरं मृत्युः कुलीनस्य, पुत्र-पौत्रादि-सन्ततेः । न युद्धे नश्यतोऽरिभ्यः, कर्तुं स्व-कुल-लाञ्छनम् ॥१६०४।। मा कार्षी-र्जीवितार्थ त्वं, दैन्यं स्व-कुल-लाञ्छनम् । कुलस्य स्वस्य सधस्य, मा गास्त्वं वेदनावशम् ॥१६०५॥ अर्थ - जैसे कुलीन योद्धा की मृत्यु हो जाना श्रेष्ठ है किन्तु मात्र एक अपने जीवन के लिए युद्ध-भूमि से भाग कर अपने पुत्र-पौत्रादि के लिए अपवाद का कारण बनना एवं अपने कुल को लांछन लगाना श्रेष्ठ नहीं है। वैसे ही हे क्षपक ! तुम मात्र अपने जीवन के लिए दीनता प्रदर्शित करके अपने कुल को लांछित मत करो। वेदना के वशीभूत होकर तुम अपने आचार्य को एवं चतुर्विध संघ को लोकापवाद का पात्र मत बनाओ ॥१६०४१६०५॥ नियन्ते समरे वीराः, प्रहाराकुलिता अपि । कुर्वन्ति भृकुटी-भङ्गं, न पुनरिणां पुरः ।।१६०६ ॥ कातरत्वं न कुर्वन्ति, परिषह-करालिताः। किं पुनर्दीनतादीनि, करिष्यन्ति महाधियः ।।१६०७ ।। अर्थ - जैसे शाशा से पीड़ित हुए भ जी सोसायुद्ध में ना जाने हो किन्तु शत्रुओं के सामने अपनी भृकुटि भंग नहीं करते अर्थात् कायरता नहीं दिखाते और शत्रुओं को पीठ दिखा कर भागते नहीं हैं; वैसे ही महाबुद्धिशाली मुनि परीषहों से आक्रान्त हो जाने पर भी भयभीत नहीं होते। और जो परीषहों से भयभीत ही नहीं होते वे क्या दीनता या मुख-विवर्णता या विषाद आदि करेंगे ? अपितु नहीं ही करेंगे॥१६०६-१६०७॥ अग्नि-मध्य-गताः केचिद्दह्यमानाः समन्ततः । अवेदना वितिष्ठन्ते, जल-मध्ये गता इव ।।१६०८॥ अर्थ - कितने ही वीर-धीर पुरुष अग्नि के मध्य चारों ओर से आग में जलते हुए भी जल के मध्य प्रविष्ट हुए पुरुष के सदृश शान्त भाव से बैठे रहते हैं।।१६०८ ।। साधुकारं परे तन्त्र, कुर्वन्त्यमुलि-नर्तनैः। आनन्दित-जन-स्वान्ता, उत्कृष्टिं कुर्वते परे॥१६०९॥ ____ अर्थ - अन्य कोई धीर-वीर पुरुष अग्नि के मध्य जलते हुए भी अपने अंगुलि-संचालन द्वारा साधुकार करते हैं और कोई वीर पुरुष विशिष्ट शब्दों द्वारा हृदयंगत आनन्द प्रगट करते हैं ॥१६०९।। प्रश्न - साधुकार का क्या भाव है ? उत्तर - "कितना अच्छा हुआ कि आज इस अग्नि के निमित्त से मेरा पूर्वबद्ध अशुभ कर्म क्षय को प्राप्त हुआ" ऐसा अभिप्राय अंगुलि-संचालन द्वारा प्रकट करना साधुकार है। अथवा कोई हृदयंगत उछलते हुए आनन्द को विशिष्ट शब्दों द्वारा प्रगट करते हुए आगत उपसर्ग को सहन कर लेते हैं।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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