SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 460
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अर्थ - इस प्रकार सारणा करने पर अर्थात् स्मरण दिलाने पर कोई-कोई क्षपक स्मृति को प्राप्त हो जाते हैं किन्तु तीव्र कर्मोदय से कोई-कोई क्षपक स्मृति को प्राप्त नहीं हो पाते अर्थात् सचेत नहीं हो पाते || १५८७ ॥ प्रश्न - सचेत एवं अचेत होने के अभ्यन्तर कारण क्या हैं और सचेत हो जाने वाला क्षपक क्या करता है? मरणकण्डिका ४३६ तस्येति सार्यमाणस्य कस्यचिज्जायते स्मृतिः । तीव्र - कर्मोदये नान्यः, स्मरणं प्रतिपद्यते ॥१५८७ ॥ उत्तर अभ्यन्तर में नोइन्द्रिय-मतिज्ञानावरण कर्मप्रकृति की उदीरणा हो जाने के कारण क्षपक स्मृति को प्राप्त नहीं हो पाते तथा जिनके इसकी उदीरणा नहीं होती और चारित्र मोह अथवा असातावेदनीय का भी उपशम हो जाता है वे सचेत होकर स्मृति को प्राप्त कर लेते हैं। - स्मृति आते ही वे विचार करते हैं कि अहो ! मैं व्याकुल होकर अपने चारित्र से च्युत हो रहा हूँ, अकाल में खाने-पीने की इच्छा करना मेरे लिए योग्य नहीं है। जिन वस्तुओं का मैं त्याग कर चुका हूँ उन्हें तो काल में भी ग्रहण करना योग्य नहीं है, तब अकाल में कैसे ? यह मुझसे महानतम अपराध हुआ है, इसका मैं पश्चाताप पूर्वक प्रायश्चित्त करता हूँ और इन परमोपकारी करुणानिधान गुरु की असीम कृपा से अपने चित्त को धर्म में स्थिर करता हूँ। इस प्रकार स्मृति को प्राप्त क्षपक स्वयं को पुनः धर्म में स्थिर कर लेता है। संतत - सारण-वारणकारी काम कषाय- हृषीक-निवारी । धर्मवतो विदधीत समाधिं, सर्वमपास्य गणी तरसाधिम् ।। १५८८ ॥ इति सारणं । अर्थ- काम, कषाय और इन्द्रियों का निवारण करने वाला वह धर्मात्मा आचार्य सतत ही क्षपक की सारणा वारणा करता है तथा उसकी पीड़ा को शीघ्रता से दूर करता हुआ समाधि कराता है || १५८८ ॥ इस प्रकार सारणा अधिकार पूर्ण हुआ ।। ३४ । ३५. कवच - अधिकार स्मृति न आने पर अथवा अयोग्य क्रिया करने पर आचार्य का कर्त्तव्य प्रतिकर्म विधातव्यं तस्य स्मृतिमगच्छतः । उपदेशोऽपि कर्त्तव्यः, स्मरणारोपण-क्षमः ।। १५८९ ।। अर्थ- स्मृति को प्राप्त न होने वाले क्षपक के प्रति भी निर्यापकाचार्य को निरन्तर प्रतिकार करते रहना चाहिए एवं स्मृति आ जाने पर उपदेश अवश्य देना चाहिए ।। १५८९ ॥ १. भगवती आराधना गाथा १५०३ की टीका ।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy