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________________ मरणकण्डिका - ३७६ अर्थ - सार-असार को न जानने वाला अज्ञानी व्यापारी जैसे बहुमूल्य माणिकरत्न में काँच का टुकड़ा खरीद लेता है, वैसे ही निदान करनेवाला मुनि अपने अमूल्य तप को बेचकर उसके बदले तुच्छ भोग खरीद लेता है।।१३०२॥ भोगजन्य निदान करने वाले मुनिजनों की निन्दा संसर्गस्यानिवृत्तस्य, चित्तेनाब्रह्मचारिणः । कायेन शीलवाहित्वं, व्यर्थं नटयतेरिव ।।१३०३॥ अर्थ - जैसे नट, श्रमण का वेश धारण कर लेता है, वैसे ही जिस मुनि का चित्त भोगों में संसक्त है वह मन से अब्रह्मचारी है और जिसके परिणाम परिग्रह से निवृत्तरूप नहीं हैं, अर्थात् जो भोगों के लिए निदान करता है वह केवल शरीर द्वारा शील पालन करता है। उस भ्रष्ट मुनि का बाहा व्रतादि का पालन करना व्यर्थ है, क्योंकि वह उस नट श्रमण के सदृश वेश मात्र से मुनि है, अंतरंग में तो अब्रह्मरूप ही भाव हैं ।।१३०३॥ आकांक्षति महादुःखं, निदानी भोग-तृष्णया। रोगित्वं प्रतिकाराय, कुबुद्धिरिव कश्चन ॥१३०४॥ अर्थ - जैसे कोई खोटो बुद्धि वाला मनुष्य रोगों का प्रतिकार करने वाली औषधि के सुख की अभिलाषा से रोगी होना चाहता है, वैसे ही निदान करने वाला मुनि भोगों की लालसा या तृष्णा से महादुख की कांक्षा करता है।।१३०४ ।। भोगार्थं वहते साधुनिंदानित्वेन संयमम्। स्कन्धेनेव कुधीर्गु/मासनाय महाशिलाम् ।।१३०५ ॥ अर्थ - "मैं इस पर सुखपूर्वक बैलूंगा'' ऐसा मान कर जैसे कोई दुर्बुद्धिवाला मनुष्य अत्यन्त भारी शिला को कन्धे पर रख कर ढोता फिरता है, वैसे ही कोई साधु (निदान द्वारा) भोगप्राप्ति के लिए दुर्द्धर संयम का भार ढोता है। अर्थात् मोक्षरूप महाफल देने वाले संयम को तुच्छ और विनश्वर भोगों की आकांक्षा से गँवा देता है ।।१३०५।। यत् सुखं भोगजं जन्तोर्यहुःखं भोग-नाशजम् । भोग-नाशोत्थितं दुःखं, सुखाधिकतमं मतम् ।।१३०६ ॥ अर्थ - इस जीव को भोगोपभोग से अर्थात् सुस्वादु भोजन-पान से एवं स्त्री, वस्त्र तथा अलंकारों से उत्पन्न होने वाले सुख की तुलना में भोगनिमित्तक वस्तुओं के नष्ट हो जाने पर जो दुःख होता है वह उस भोगजन्य सुख से अधिक है॥१३०६ ॥ क्षुधादि-पीडिते देहे, समासक्तः कथं सुखी ? दुःखस्याऽस्ति प्रतीकारो, ह्रस्वीकारोऽथवा सुखम् ॥१३०७ ।। अर्थ - भूख, प्यास, शीत, उष्ण एवं रोगादि से पीड़ित इस शरीर में जो आसक्त है, उसे क्या सुख
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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