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________________ मरणकण्डिका - ३६० बध्यते समितो नायैः, काय-मध्ये भ्रमन्नपि । सन्नद्धो विध्यते कुत्र, शर-वर्षे रणाङ्गणे॥१२५८ ।। अर्थ - षट्काय जीक्समूह के मध्य विचरण करता हुआ भी समितिधारक मुनि हिंसादि पापों से नहीं बंधता। क्या कभी रणाभ्यासी एवं दृढ़ कवच से युक्त योद्धा युद्धभूमि में बाणों की वर्षा होते हुए भी बाणों से बेधित होता है? अर्थात् नहीं होता ॥१२५८ ।। बालश्शरति यत्रैव, तत्रैव परिहारवित् । बध्यते कल्मषैर्बाल, इतरो मुच्यते पुनः ।।१२५९ ।। अर्थ - जीवों की रक्षा के उपायों को न जानने वाला अज्ञानी जहाँ अर्थात् जिस क्षेत्र में विचरण करता हुआ जिन-जिन क्रियाओं को करता हुआ पापों से बँधता है, जीवों की रक्षा के उपायों को जानने वाला साधु वहीं अथात् उसी क्षेत्र मे विचरण कर, वहीं क्रियाएं करता हुआ पापकर्म से बद्ध नहीं होता अपितु उन पापों से मुक्त ही होता है ||१२५९॥ समितियों का उपसंहार यदा तदा ततश्चेष्टां, चिकीर्ष: समितो भव। पुराणं क्षिप्यते कर्म, नाप्नोति समितो नवम् ।।१२६० ।। अर्थ - निर्यापकाचार्य क्षपक को शिक्षा देते हुए कहते हैं कि हे क्षपक ! तुम जब-जब गमनागमन करना चाहो, बोलना चाहो, आहार-पानादि करना चाहो तब-तब समितियों में तत्पर रह कर ही करो। क्योंकि सम्यक् प्रवृत्ति करने वाला साधु नवीन-नवीन कर्मों का बन्ध नहीं करता अपितु पूर्वबद्ध कर्मों की निर्जरा ही करता है।।१२६० ।। राद्धान्त-मातरौऽष्टौ, ता: पान्ति रत्नत्रयं यतेः । जनन्यो यत्नतो नित्यं, तनुजस्येव जीवितम् ।।१२६१ ।। अर्थ - जैसे माता, बालक के जीवन की नित्य ही यत्नपूर्वक रक्षा करती है, वैसे ही पाँच समिति एवं तीन गुप्तिरूप अष्ट प्रवचन माता मुनि के सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र की रक्षा करती है ।।१२६१।। चारित्राराधना - पाँच महाव्रत, पाँच समिति और तीन गुप्तिरूप तेरह प्रकार के चारित्र को जो साधु निर्दोषरीत्या पालन करते हैं उन्हीं के चारित्र आराधना होती है। अहिंसा आदि व्रतों को स्थिर करने के लिए एक-एक व्रत की पाँच-पाँच भावनाएँ कहीं गई हैं। अहिंसाव्रत की भावनाएं मनोगुप्त्येषणादान-निक्षेपेर्येक्षिताशिताः। महाव्रते मता जैनैरादिमाः पञ्च भावनाः ।।१२६२ ॥ अर्थ - महाव्रतों में प्रथम महाव्रत अहिंसा है। मनोगुमि, एषणा समिति, आदाननिक्षेपण समिति, ईर्या समिति और आलोकित आहार-पान, इसकी ये पांच भावनाएँ जैनों के द्वारा मानी गई हैं ॥१२६२॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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