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________________ मरणकण्डिका - ३५० प्रश्न - वचनों के कितने भेद हैं और उनके लक्षण क्या हैं ? उत्तर - सत्य, असत्य, सत्यसहित मृषा एवं असत्यमृषा के भेद से वचन चार प्रकार के होते हैं। “सतां हिता सत्या'' इस नीत्यनुसार सजनों की हितकारी वाणी 'सत्य' कहलाती है। जो सत्य नहीं है वह 'असत्य' हैं। जैसे मृगमरीचिका को जल कहना। जिसमें सत्य-असत्य दोनों प्रकार के वचन हैं वह 'सत्यमृषा' वचन है। इसे उभय वचन भी कहते हैं। जैसे कमण्डलु को घट कह देना, क्योंकि कमण्डलु घट के सदृश जलधारण करता है अतः सत्य है किन्तु आकार-प्रकार घड़े के सदृश नहीं है अतः असत्य है। जो सत्य भी नहीं है और असत्य भी नहीं है उसे असत्यमृषा या अनुभय वचन करते हैं। प्रश्न - साधु की भाषा समिति में कौन-कौन से वचन बोलने का विधान है ? उत्तर - सत्य और असत्यमृषा अर्थात् अनुभय ऐसे दो प्रकार के वचन तथा सूत्रानुसार वचन बोलना, साधु की भाषा समिति है। प्रश्न - सूत्रानुसार वचन का क्या अर्थ है ? उत्तर - आगम के अनुकूल वचन बोलना सूत्रानुसार वचन कहलाते हैं | प्रश्न - सत्य महाव्रत में, भाषा समिति में एवं सत्य धर्म में सत्य बोलने का ही आदेश है, तब इन तीनों में क्या अन्तर है ? उत्तर - सत्य महाव्रत में साधुजन, साधु और असाधु दोनों से सत्य भाषण कर सकते हैं, तथा अधिक भी बोल सकते हैं। भाषा समिति में उन्हीं दोनों प्रकार के पुरुषों के साथ सत्य किन्तु परिमित अर्थात् अल्प बोलने का विधान है । किन्तु सत्यधर्म का पालन करने वाला साधु केवल साधु जनों से ही सम्भाषण कर सकता है। वह उनके साथ कुछ अधिक भी बोल सकता है। इन तीनों में यही अन्तर है। सत्य वचन के दस भेद देश-सम्मति-निक्षेप-नाम-रूप-प्रतीतिता। सम्भावनोपमाने च, व्यवहारे भाव इत्यपि ।।१२५१ ॥ अर्थ - देश सत्य, सम्मति सत्य, निक्षेप सत्य, रूप सत्य, प्रतीतिसत्य, सम्भावना सत्य, उपमा सत्य, व्यवहार सत्य और भाव सत्य के भेद से सत्य-वचन दस प्रकार के होते हैं ।।१२५१ ।। प्रश्न - इन दस प्रकार के सत्य वचनों के लक्षण क्या-क्या हैं? उत्तर - जनपद सत्य-तत्तद्देशवासी मनुष्यों के व्यवहार में जहाँ जो शब्द रूढ़ हो जाते हैं, उन्हें जनपद सत्य कहते हैं। जैसे एक ही भात को अन्य-अन्य देशों में अलग-अलग भात, भक्त, भाटु, भेटु, वंटक, मूकुडू, क्रूलू, क्रूर, ओदन, चोरु और चोखा कहते हैं और ये सब अपने-अपने देश की अपेक्षा सत्य हैं। सम्मति सत्य - बहुत मनुष्यों की सम्मति से जो शब्द सर्वसाधारण में रूढ़ हो जाते हैं उन वचनों को सम्मति सत्य कहते हैं। जैसे मनुष्य होते हुए भी राजा-रानी को देव-देवी कहना। अथवा किसी मनुष्य में राजा सदृश सम्पन्नता देखकर उसे राजा, राव, राणा या नरेन्द्र कहना।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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