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________________ मरणकण्डिका - ३२६ त्रिलोक-दाही विषयोद्ध-तेजाः, तारुण्य-तृण्या-ज्वलित: स्मराग्निः। न प्लोषते यं स्मृति-धूमजालः, स वन्दनीयो विदुषा महात्मा ।।११७१ ॥ अर्थ - तीन लोकरूपी वन को जलाने वाली, विषयरूपी बढ़ते हुए तेज से युक्त, यौवनरूपी घासफूस से प्रदीप्त एवं स्मृतिरूपी धुंआजाल से व्याप्त, ऐसी काम रूपी अग्नि जिसे नहीं जलाती वही महात्मा विद्वानों द्वारा वन्दनीय है।।११७१॥ । विपुल-यौवन-नीरमनाकुलो, विषय-नीरनिधि रति-वीचिकम्। इह वधू-मकरैरकदर्थितस्तरति धन्यतमः पर-दुस्तरम् ॥११७२ ।। इति चतुर्थं ब्रह्मचर्यव्रतम्॥ अर्थ - इस विषय रूपी समुद्र में यौवनरूपी विपुल जल है, स्त्री की रतिक्रीड़ारूपी लहरें हैं, स्त्री रूप भयंकर मगरमच्छ हैं और इसे पार करना अति कठिन है। मगर-मच्छादि से अछूते रहकर जो इस समुद्र को पार कर जाते हैं, वे महापुरुष ही इस संसार में धन्य पुरुषों में भी महाधन्य हैं ।।११७२ ।। इस प्रकार ब्रह्मचर्य नामक चतुर्थव्रत का वर्णन पूर्ण हुआ। अपरिग्रह नामक पाँचवाँ महाव्रत परिग्रह के भेद-प्रभेद बाह्यमाभ्यन्तरं सङ्गं, कृत्त-कारित-मोदनैः । विमुञ्चस्व सदा साधो ! मनो वाक्काय-कर्मभिः॥११७३ ।। अर्थ - हे साधो ! तुम बाह्य और अभ्यन्तर दोनों परिग्रहों का मन, वचन, काय एवं कृत, कारित अनुमोदना से सदा के लिए त्याग कर दो ॥११७३ ।। अभ्यन्तर परिग्रह मिथ्यात्व-वेद-हास्यादि-क्रोध-प्रभृतयोऽन्तराः। एक-त्रि-षट्-चतुः संख्या, सङ्गाः सन्ति चतुर्दश ।।११७४॥ अर्थ - मिथ्यात्व एक, स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसक वेद के भेद से तीन वेद, हास्य, रति, अरति, शोक, भय और जुगुप्सा के भेद से छह नोकषाय तथा क्रोध, मान, माया और लोभ के भेद से चार कषायें, इस प्रकार अन्तरंग परिग्रह चौदह प्रकार का है।।११७४ ।। बाह्य परिग्रह क्षेत्रं वास्तु धनं धान्यं, द्विपदं च चतुष्पदम् । यानं शय्याशनं कुप्यं, भाण्डं सङ्गा बहिर्दश ॥११७५ ॥ अर्ध • क्षेत्र-खेती आदि का स्थान, वास्तु-मकान-महलादि, धन-सुवर्ण, चाँदी, रत्नः आदि, धान्य-अनाजादि, द्विपद-दास, दासी, सेवकादि, चतुष्पद हाथी, घोड़ा, गाय भैंस आदि, यान-पालकी तथा विमानादि, शय्या-आसन-कुप्य-वस्त्र और भाण्ड, ये दस प्रकार के बाह्य परिग्रह हैं ॥११७५ ।।
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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