SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 326
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरणकण्डिका - ३०२ उत्तर - जैसे ताँबा एवं चाँदी को गला कर विलीन कर दिया है, वैसे ही रज और वीर्य का एक दूसरे में विलीन हो जाना कललावस्था है। मासेन बुदबुदी-भूतं, तन्मासेन घनी-कृतम्। मांसपेशी च मासेन, जायते गर्भ-पञ्जरे ॥१०५६।। अर्थ - दूसरे मास में वह वीर्य बुलबुले के सदृश रहता है, पुन: तीसरे मास में घनीभूत अर्थात् कठोररूप में, फिर चतुर्थ मास में वह उस गर्भपंजर में मांसपेशी की आकृति को धारण कर लेता है॥१०५६ ॥ मासेन पुलकाः पञ्च, मासेनाङ्गानि षष्ठके। उपाङ्गानि च जायन्ते, गर्भवास-निवासिनः ॥१०५७ ।। अर्थ - गर्भवास में निवास करने वाले उस जीव के पांचवें मास में उस मांसपिण्ड में से पाँच अंकुर अर्थात् पुलक दो हाथ, दो पैर एवं एक सिर रूप में उत्पन्न होते हैं। तथा छठे मास में उस बालक के अंग और उपांग बन जाते हैं ।।१०५७॥ चर्म-रोमाणि जायन्ते, मासे तस्यात्र सप्तमे । स्पन्दोऽष्टमे विनिर्याणं, नवमे दशमे ततः॥१०५८।। __ अर्थ - उस गर्भस्थ पिण्ड पर सातवें मास में चर्म, रोम और नख बन जाते हैं। आठवें मास में हलनचलन होने लगता है। तथा नौवें अथवा दसवें मास में उसका जन्म हो जाता है॥१०५८ ॥ यतोऽशुचीनि सर्वाणि, कललादीनि कारणम् । वर्चासीव ततो देहो, जुगुप्स्यो महतां सदा ॥१०५९।। इति निष्पत्तिः॥२॥ __अर्थ - रज और वीर्य की कलिलादि सभी अवस्थाएँ अत्यन्त अपवित्र हैं, अत: महापुरुषों द्वारा सदा ही यह देह विष्ठा की राशि के सदृश ग्लानि करने योग्य है।।१०५९।। इस प्रकार शरीर-रचना का वर्णन समाप्त ॥२॥ क्षेत्र कथन तिष्ठत्यामाशयस्याध, ऊर्ध्व पक्वाशयस्य सः । जरायुर्वेष्टितो मासान्नवात्रामध्य-मध्यग:॥१०६० ॥ अर्थ - आमाशय के नीचे और पक्वाशय के ऊपर, इन दोनों अशुचि स्थानों के मध्य में जाल सदृश जरायु से वेष्टित यह गर्भ नव या दस मास पर्यन्त रहता है। आमाशय एवं पक्वाशय के मध्य में रहने से इसे अमेध्य मध्यग कहते हैं ।।१०६०॥ प्रश्न - आमाशय और पक्वाशय किसे कहते हैं ?
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy