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मरणकण्डिका २९७
मातारस्तीर्थकर्तॄणां भुवनोद्योतकारिणाम् ।
जायन्ते वनिता धन्याः शक्र वन्द्य-क्रमाम्बुजाः ।। १०३६ ।।
अर्थ - तीनों लोकों में उद्योत करने वाले तीर्थंकर देव की माताएँ श्रेष्ठ, धन्य तथा इन्द्र द्वारा वन्दनीय चरण कमल वाली भी होती हैं । १०३६ ॥
शलाका-पुरुषास्ताभिर्जन्यन्ते भुवनार्चिताः ।
धात्रीभिरिव शुद्धाभिर्मणयः पुरु-तेजस: ।। १०३७ ॥
अर्थ - जैसे शुद्ध पृथ्वी द्वारा उत्कृष्ट तेजस्वी रत्न उत्पन्न किये जाते हैं, वैसे ही अनेक धन्य माताओं द्वारा त्रिभुवनपूज्य शलाका महा - पुरुष उत्पन्न किए जाते हैं ।। १०३७ ॥
पुंरत्नानि न जायन्ते, शुद्ध-शीलाः स्त्रियों विना ।
विना नीरद - मालाभिः पानीयानां क्व सम्भवः ।। १०३८ ।।
अर्थ- शुद्ध शीलवती महिलाओं के बिना तीर्थंकर एवं बलभद्र जैसे नररत्न उत्पन्न नहीं हो सकते। क्या कभी मेघमालाओं के बिना भी जल की उत्पत्ति हो सकती है ? नहीं हो सकती ॥१०३८ ॥ आजन्म विधवाः काश्चिद्, ब्रह्मचर्यमखण्डितम् ।
धरन्ति दुर्धरं धन्या, ज्वलद्दीपमिवोज्ज्वलम् ॥१०३९ ॥
अर्थ - कितनी ही महिलाएँ आजीवन विधवा रहती हुई अपने ब्रह्मचर्य व्रत को अखण्डित रखती हैं। अनेक धन्य महिलाएँ प्रारम्भ से ही जलते हुए दीपक के सदृश उज्ज्वल एवं दुर्धर ब्रह्मचर्य धारण करती हैं ।। १०३९ ॥
कन्याभिरार्थिकाभिश्च, चीयते दुश्चरं तपः ।
विच्छिद्य शम-शस्त्रेण, मन्मथ - प्रतिबन्धकम् ॥ १०४० ॥
अर्थ - कुमारी कन्याओं द्वारा एवं आर्यिकाओं द्वारा प्रशम भाव रूप शस्त्र से ब्रह्मचर्य व्रत के प्रतिबन्धक मन्मथ को छेद कर घोर तपश्चरण किया जाता है || १०४० ॥
ध्रियते शुद्ध-शीलाभिर्यावज्जीवमदूषितम् ।
पति - ब्रह्मव्रतं स्त्रीभिः, पराभिः पूजितं सताम् ।। १०४१ ।।
अर्थ- शुद्ध स्वभाव वाली अनेक अनेक श्रेष्ठ नारियाँ यावज्जीवन निर्दोष एकपतिव्रत का पालन करती हुई, राजा आदि सज्जन पुरुषों द्वारा पूजित होती हैं ।। १०४१ ।।
देवेभ्यः प्रातिहार्याणि प्राप्ता विख्यात - कीर्तयः ।
योषाः शील- प्रसादेन, श्रूयन्ते बहवो भुवि ।। १०४२ ।।
अर्थ - विख्यात है कीर्ति जिनकी ऐसी अनेकानेक महिलाएँ इस पृथ्वीतल पर सुनी जाती हैं जिन्होंने
अपने शुद्ध शील के प्रभाव से देवेन्द्रों द्वारा प्रातिहार्य प्राप्त किये थे । १०४२ ॥
प्रश्न - इस काल में ऐसी कौन सी नारियाँ लब्धप्रतिष्ठ हुई हैं ?