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________________ मरणकण्डिका - २९३ प्राब्जलत्वं विना स्त्रीषु, विसम्भो जायते कथम्। विसम्मेण विना तासु, जायते कीदृशी रतिः ॥१०१०॥ अर्थ - जिन स्त्रियों में सरलता नहीं है, उनमें विश्वास कैसे कर सकते हैं और विश्वास के बिना उनमें रति किस प्रकार हो सकती है।।१०२०।। बाहुभ्यां जलधे: पारं, तीर्वा याति परं ध्रुषम् ।। न माया-जलधेः स्त्रीणां बहु-विभ्रम-धारिणः ॥१०११॥ अर्थ - जो महाबलशाली पुरुष अपनी भुजाओं के बल से तैर कर समुद्र का किनारा प्राप्त कर सकता है, वह पुरुष भी माया रूपी जल से भरे और अत्यधिक विभ्रमरूपी भँवर वाले स्त्री रूपी समुद्र को पार करने में समर्थ नहीं होता है॥१०११ ।। सव्याघ्रव गुहा रत्नैर्बहु-भेदैर्विराजते । रमणीया सदोषा च, जायते महिला सदा॥१०१२ ।। अर्थ - जैसे नाना प्रकार के बहुत रत्नों से भरी किन्तु व्याघ्र के निवास से युक्त गुफा भयानक होती है, वैसे ही अति सुन्दर एवं सदा मधुर बोलने वाली भी कपटयुक्त स्त्री सदोष होती है।।१०१२।। न दृष्टमपि सद्भाव, धन-धी: प्रतिपद्यते । गोधान्तद्धि विथत्ते सा, पुरुष कुल-पुश्यपि ।।१०१३॥ ___अर्थ - जैसे गोह जिस भूमि को पकड़ लेती है या जिस स्थान पर चिपक जाती है, बल पूर्वक छुड़ाये जाने पर भी वह उसे नहीं छोड़ती, वैसे ही उत्तम कुल में उत्पन्न भी कुटिल बुद्धि वाली स्त्री पुरुष के द्वारा देख लिये गये अपराध को भी न स्वीकार करती है और न उस दोष को छोड़ती है।।१०१३ ।। स्त्रीवाचक शब्दों की निरुक्ति अर्थ से भी स्त्री के दोष प्रगट होते हैं। यथा दोषाच्छादनत: सा स्त्री वधूर्वध-विधानतः । प्रमदा गदिता प्राज्ञैः, प्रमाद बहुलत्वतः ॥१०१४ ॥ अर्थ - प्राज्ञ पुरुष नारी को दोषों का आच्छादन करने के कारण स्त्री', अपने पति का भी वध करने में नहीं चूकती अत; 'वधू' और प्रमाद की बहुलता के कारण उसे 'प्रमदा' कहते हैं ।।१०१४।। नारियत: परोस्त्यस्यास्ततो नारी निगद्यते। यतो विलीयते दृष्ट्वा , पुरुषं विलया ततः॥१०१५ ।। अर्थ - ‘न अरिः इति नारी' इस निरुक्ति अर्थानुसार पुरुष के लिए इससे बढ़कर अन्यकोई वैरी नहीं है, इसलिए इसे 'नारी' कहते हैं और पुरुष के लिए अनर्थकारी है अथवा पुरुष को देखकर विलीन हो जाती है या छिप जाती है, इसलिए इसे 'विलया' कहते हैं ।।१०१५॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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