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मरणकण्डिका - २८३
अर्थ - अत्यधिक दुखरूपी लहरों से युक्त भवसमुद्र में मुझे गिरना पड़ेगा, इसका विचार किये बिना मदनातुर मानव क्या-क्या कार्य नहीं करता ? अर्थात् सब कुछ कर डालता है।९५५ ।।
दुर्मोचैः कामिनी-पाशैः, कामी वेष्टयते कुधीः ।
लालापाशैरिवात्मानं, कोशकार-कृमिः स्वयम् ।।९५६ ।। अर्थ - जैसे रेशम का कीड़ा अपने ही मुख में से तार निकालकर उससे अपने को ही बांध लेता है, वैसे ही दुर्बुद्धि मनुष्य, जिसका छूटना अशक्य है ऐसे स्त्रीरूप पाश के द्वारा अपने आप को बाँध लेता है।।९५६॥
रागो द्वेषो मदोऽसूया, पैशून्यं कलहो रतिः।
वचना पराभूतिर्दोषाः सन्ति स्मरातुरे॥९५७ ॥ अर्थ - कामी पुरुष में राग-द्वेष, घमण्ड, असूया, पैशून्य, कलह, रति, ईर्ष्यायुक्त वचन एवं परतिरस्कार आदि अनेक दोष होते हैं ।।९५७ ।।
___ काम-सेवन से होने वाला जीवघात तिल-नाल्यामिव क्षिप्रं, तप्तलोह-प्रवेशने।
तिलानां देहिनां पीड़ा, योन्यां लिङ्ग-प्रवेशने ॥९५८॥ अर्थ - जैसे तिलों से भरी नलिका में तपाये हुए लोहे की सलाई के प्रवेश से शीघ्र ही तिल जल कर नष्ट हो जाते हैं, वैसे ही स्त्री की योनि में लिंग प्रवेश होने पर वहाँ के सम्मूर्छन जीव शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं।।९५८॥
इच्छावतीमनिच्छां वा, दुर्बलां दुर्लभां कुधीः ।
अज्ञात्वा याचते कामी, सर्वाचार-बहिर्भवः ।।९५९ ॥ अर्थ - दुर्बुद्धि एवं सर्व सदाचार से बहिर्भूत कामी पुरुष यह स्त्री मुझे चाहती है या नहीं, दुर्बल है या हृष्ट-पुष्ट है तथा दुर्लभ है या सुलभ है इत्यादि विषय जाने बिना ही उसकी याचना करता रहता है ॥९५९॥
परकीयां स्त्रियं दृष्ट्वा, किं काङ्क्षति विमूढ-धीः ।
न हि तां लभते जातु, पापमर्जयते परम् ॥९६० ।। अर्थ - विमूढ़ बुद्धि कामी पुरुष पर-दारा को देख कर क्यों उसकी वांछा करता है ? क्योंकि वह अन्य पुरुष की स्त्री को प्राप्त तो कर नहीं सकता, व्यर्थ में पापों का संचय कर लेता है ।।१६०॥
अभिलष्य चिरं लब्ध्वा, परनारी कथञ्चन ।
अनिवृत्तमविश्वस्तं, सेवने तादृगेव सः॥९६१॥ अर्थ - चिरकालतक अभिलाषा करने पर कदाचित् पर-स्त्री का लाभ हो भी जाय, तो उसके मिलने से पूर्व वह जैसा व्याकुल, अविश्वस्त एवं अतृप्त रहता था, मिलने अथवा सेवन करने पर भी वह वैसा ही रहता है। अर्थात् 'मुझे कोई देख न ले' इस भय से वह व्याकुल रहता है ॥९६१ ।।