SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरणकण्डिका - २६१ आहारोपधि-भेदेन, द्विधा संयोजनं मतम्। दुःसृष्टाः स्वान्त-वाकाया, निसर्गस्त्रि-विधो मतः ।।८४४॥ अर्थ - आहार-पान संयोग और उपधि संयोग के भेद से संयोग दो प्रकार का है तथा मन की दुष्प्रवृत्ति, वचन की दुष्प्रवृत्ति और कार्य की दुष्प्रवृत्ति के भेद से निसर्म के तीन भेद हैं।1८४४ ।। प्रश्न - निर्वर्तनाधिकरण आदि के क्या-क्या लक्षण हैं ? उत्तर - आस्रव के मुख्यतः दो आधार हैं। जीवाधिकरण और अजीवाधिकरण। जीव के भावों एवं क्रियाओं के आधार से जो आस्रव होता है वह जीवाधिकरण है और अजीव की क्रिया के आधार से जो आस्रव होता है वह अजीवाधिकरण है। जीवाधिकरण के संरम्भ आदि एक सौ आठ भेद पुण्यानव एवं पापासव इन दोनों के लिए हेतु हैं किन्तु अजीवाधिकरण के निर्वर्तनादि भेद-प्रभेद पापासव के ही हेतु हैं। यथा - उपधिनिर्वर्तना: जिनके द्वारा जीवों को बाधा हो ऐसे छिद्र वाले उपकरणों का निर्माण करना । या जिन उपकरणों के निर्माण में ही जीवों का घात होता है उसे उपधि निर्वर्तना कहते हैं। शरीर निर्वर्तना-शरीर से असावधानी पूर्वक प्रवृत्ति करना। या शरीर की दुष्ट कार्यों में प्रवृत्ति होना शरीर निर्वर्तना है। रखने को निक्षेप कहते हैं। इसके चार भेद हैं - सहसा निक्षेप - उपकरण या पुस्तक आदि या शारीर का मल आदि भय से अथवा अन्य किसी कारणान्तर से सहसा रख देना या शीघ्रता से त्याग करना सहसा निक्षेप है। अदृष्ट निक्षेप - उपकरण आदि को बिना देखे ही पृथ्वी आदि पर शीघ्रता से रख देना, अदृष्ट निक्षेपाधिकरण है। दुर्दृष्ट निक्षेप - उपकरणादि को असावधानी से या दुष्टता पूर्वक पृथ्वी आदि को साफ करके रखना। या वे उपकरणादि दुष्टता पूर्वक साफ करके रखना, दुर्दृष्ट निक्षेपाधिकरण है। अप्रत्यवेक्षण निक्षेप - बिना देखे सीधे ही वस्तु रख देना। अथवा स्थान की सफाई करने के पश्चात् पुनः उस स्थान को देखे बिना वस्तु रख देना अप्रत्यवेक्षण निक्षेपाधिकरण है। आहार-पान संयोग - आहार और पान का परस्पर इस प्रकार मिलाना जिसमें जीव-बाधा हो। एक जल में दूसरा जल या एक भोजन में दूसरा भोजन मिलाना या भोजन में पेय आदि मिलाना। या उष्ण जल में ठण्डा जल मिलाना, या उष्ण भात में ठण्डी छाछ मिलाकर खाना या उबलती हुई खिचड़ी या दाल में ठण्डा जल डाल देना। यह सब आहार-पान संयोगाधिकरण है। यहाँ इतना विशेष जानना कि जिस पेय या भोजन में सम्मूर्छन जीव होते हैं या जिला की लोलुपता होती है वहाँ यह सम्मिश्रण हिंसा का अधिकरण स्वीकार किया गया है, सर्वत्र नहीं। उपधि संयोग - पीछी, कमण्डलु एवं पुस्तकादि उपकरणों का इस प्रकार संयोग करना जिससे जीवों
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy