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________________ मरणकण्डिका - २१२ अर्थ - वह क्षपक समाचारी अर्थात् अपने योग्य आचरण करके, विधिपूर्वक अपने दोषों की विशुद्धि करता है, तथा भली प्रकार आत्मा को विशुद्ध करके स्वीकृत चारित्र में गुणों की वृद्धि की आकांक्षा करते हुए गुरु के समीप साधना करता है। १५:: . वर्षासु विविधं स्पृष्ट्वा तपःकर्म विधानतः। सुखवृत्तौ स हेमन्ते, संस्तर प्रतिपद्यते ।।६५८ ।। अर्थ - वह क्षपक वर्षाकाल में विधिपूर्वक अनेक प्रकार के तपश्चरण करता है और सुखरूप वृत्ति को सम्पन्न करनेवाली हेमन्त ऋतु में संस्तर का आश्रय ग्रहण करता है।६५८ ॥ निस्पर्शवन्निश्चतुरङ्ग-दोषं, गुरूपदेशेन विशुद्ध-चेताः। प्रवर्तते शुद्ध-गुणाधिरूढः, संसार-कान्तार-विलङ्घनाय ।।६५९ ।। इति गुणदोषौ । अर्थ - समस्त दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप इन चार आराधनाओं के अतिचारों से शुद्ध होकर, गुरु के उपदेश से विशुद्ध चित्तधारी क्षपक शुद्ध गुणसमूह में आरूद होता हुआ, संसार रूप विकट वन का उल्लंघन करने हेतु समाधिमरण में प्रयत्न करता है ।।६५९।। इस प्रकार गुण-दोष नामक अधिकार पूर्ण हुआ ||२४॥ २५. शय्या-अधिकार संन्यास अयोग्य शय्या का निषेध छन्द-म्रग्विणी गाथका वादका नर्तकाश्चाक्रिकाः,शालिका मालिकाः कोलिका वांशिकाः। काष्टिका लौहिका मात्सिका: पात्रिका:,काण्डिकादाण्डिकाक्षार्मिकाश्छिम्पकाः ।।६६०॥ चारणा वारणा वाजिनो मेषका, मद्यपा: पण्डका: सार्थिका; सेवकाः। ग्राविका: कोट्टपालाः कुलाला भटाः, पण्यनारीजना द्यूतकारा विटाः ।।६६१।। सन्ति यस्याः समीपे नि:कृष्ट-क्रिया, सा न शय्या निषेज्या कदाचिबुधैः। पालयद्भिः समाधानरत्नं, सदारूढ-संसार-कान्तार-विच्छेदकम् ।।६६२ ।। अर्थ - गन्धर्व अर्थात् गायक, वादक, नर्तक, चाक्रिक, शालिक अर्थात् हाथी, घोड़े आदि की सेवा में नियुक्त पुरुष, मालाकार, कोली, वांशिक अर्थात् बाँसुरी आदि बजाने वाले या बाँस पर चढ़कर खेल दिखाने वाले, बढ़ई, लुहार, मात्सिक अर्थात् मछलीमार, पात्रिक अर्थात् बर्तन बेचने वाले, कांडिक, दांडिक अर्थात् दण्डा बेचने या खेलने वाले, चमार, रंगरेज, भाट, वारण, घुड़सवार, मेदों के पालक, मद्यपायी, पण्डे, सार्थिक,
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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