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________________ मरणकण्डिका - १५७ प्रश्न - इस उपर्युक्त कथन का क्या तात्पर्य है ? उत्तर - दर्शन, ज्ञान, चारित्र और तप ये चारों मोक्षमार्ग के अंग हैं अतः इन्हें चतुरंग कहते हैं। यह चतुरंग लोकपूज्य निर्वाण का उपकारक है किन्तु सिद्धान्त से अनभिज्ञ निर्यापक क्षपक के इस चतुरंग को नष्ट कर देता है। एक बार नष्ट हो जाने पर यह चतुरंग पुनः प्राप्त होना सुलभ नहीं है, क्योंकि जो चतुरंग को नष्ट कर देता है वह विवादमा ! होगर गीत में चला जाता है, यह उक्त कथन का तात्पर्य अर्थ अर्थात् अभिप्राय है। संसार-सागरे घोरे, दुःख-नक्र-कुलाकुले। दुःखतोऽटाट्य-मानेन, प्राप्यते जन्म-मानुषम् ।।४४८ ।। ____ अर्थ - जिसमें दुखरूपी मगरमच्छों का समुदाय भरा हुआ है ऐसे घोर संसार सागर में भ्रमण करता हुआ यह जीव अत्यन्त कठिनाई से मनुष्यभव को प्राप्त करता है ।।४४८ ॥ देशो जातिः कुलं रूपं, कल्पता जीवितं मतिः। श्रवणं ग्रहणं श्रद्धा, संयमो दुर्लभो भवेत् ।।४४९।। अर्थ - इस संसार में देश, कुल, जाति, रूप, आरोग्यता, आयु, बुद्धि, धर्मश्रवण, उसका ग्रहण, उस पर श्रद्धा और संयम की प्राप्ति ये सब एक से एक अतिदुर्लभ हैं॥४४९ ।। प्रश्न - जब जीव जन्म लेता है तब कोई-न-कोई देश, कुल, जाति एवं बुद्धि आदि तो सहज प्राप्त हो जाते हैं, इनमें दुर्लभता की क्या बात है ? उत्तर - जैसे साधु के मुख से कठोर वचन निकलना दुर्लभ है, सूर्य में अन्धकार, क्रोधी में दया, लोभी में सत्यवचन, मानी में परगुणकथन, स्त्रियों में सरलता, दुष्टों में कृतज्ञता और विधर्मियों में तत्त्वबोध दुर्लभ है, वैसे ही मनुष्य-भव दुर्लभ है क्योंकि तीन सौ तैंतालीस घन राजू प्रमाण इस विशाल विश्व में ढाई द्वीप सम्बन्धी पैंतालीस लाख योजन मात्र मनुष्य के लिए हैं, अतः मनुष्यभव की दुर्लभता है। स्थान की अपेक्षा अनन्तकाल व्यतीत हो जाने के बाद ऐसा स्थान प्राप्म होता है। यदि मनुष्य भव भी मिल जाय तो आर्यक्षेत्र मिलना, इसमें भी धर्माराधन योग्य देश में जन्म होना दुर्लभ है, उसमें भी सज्जातित्व मिलना दुर्लभ है। प्रश्न - सज्जाति किसे कहते हैं ? उत्तर - पिता के कुल और माता की जाति का शुद्ध होना सज्जाति है। अर्थात् जातिसंकर, वीर्यसंकर आदि जिस जाति में नहीं होते वह सज्जाति है। अर्थात् जिस जाति में कन्या का ही विवाह होता है। पुनर्विवाह, विधवा-विवाह, अन्तरजातीय एवं विजातीय विवाह नहीं होता और जो व्यभिचारी की परम्परा के अन्तर्गत नहीं है। इस प्रकार के गुणविशिष्ट को सज्जातित्व कहते हैं। __ यदि सज्जाति प्राप्त हो गई तो उत्तम कुल, प्रशस्त रूप, दीर्घायु, हेयोपादेयरूप बुद्धि, शारीरिक और मानसिक नीरोगता, जैनधर्मोपदिष्ट तत्त्वों का स्वरूप सुनना, उन्हें ग्रहण करना, उन पर श्रद्धा करना और संयम
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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