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________________ मरणकण्डिका - ८३ लिया, उसका सब धन और कन्या को भी उन्होंने छीन लिया। उस समय चोरों का वह प्रधान चोरों से बोला कि "देखी आपने मुनिराज की उदासीनता और निस्पृहता। जैसे जकड़ कर बाँध लेने वाले आप लोगों को उन्होंने कुछ नहीं कहा वैसे ही नमस्कार करनेवाली इस महिला को और इसके परिकर को भी कुछ नहीं कहा। वे चाहते तो संकेत दे सकते थे कि जहाँ आप जा रहे हैं वहाँ चोरों का समुदाय बैठा है।" प्रधान के ऐसे वचन सुनते ही नागदत्ता अत्यन्त कुपित हो उठी और बोली कि “हे प्रधान ! मुझे शीघ्र ही अपनी छुरी दो, जिससे मैं अपनी इस कोख को चीर कर शान्तिलाभ लूँ जिसमें मैंने उस पापी मुनि को नवमास पर्यन्त पेट में रखकर अपवित्र किया है। जिस मुनि की आप प्रशंसा कर रहो हो वह मेरा ही पुत्र है उसी ने मेरे साथ इतमी निर्दयता की। अपनी बहिन पर भी उसे दया नहीं आई ? पूछने पर भी वह संकेत नहीं दे सका?" इत्यादि वचन सुनकर और यह जानकर कि ये उन मुनिराज की माँ एवं बहिन हैं', सरदार बोला कि "हे माता ! तुम धन्य हो, तुम जगत्माता हो, तुम्हारी कुक्षि धन्य है। वह अत्यन्त पवित्र है जिसने ऐसे वैरागी महात्मा को जन्म दिया।" इत्यादि वचनों से सान्त्वना दे कर और उन्हें अपनी माँ-बहिन बराबर सम्मान देकर वैभव एवं सुरक्षा के साथ कौशाम्बी नगर भेज दिया और स्वयं ने भी चौर्यकर्म का परित्याग कर दिया। एकत्वभावना की दृढ़ता दर्शानेवाली नागदत्त मुनिराज की यह कथा अत्यन्त वैराग्यप्रद है। ॥ एकत्व भावना पूर्ण हुई॥ धृतिभावना उपसर्ग-महायोधां, परीषह चमू पराम् । कुर्वाणामल्प-सत्वानां, दुर्निवार-रयां भयम् ।।२०८॥ धीरता-सेनया धीरो, विवेकशर-जालया। जायते योधयन्नाशु, साधुः पूर्ण-मनोरथः ॥२०९॥ ॥ इति धृतिः ॥ अर्थ - जो अल्पशक्ति वालों को भय उत्पन्न करनेवाली है एवं उपसर्गरूपी महा योद्धाओं से युक्त है ऐसी दुर्वार वेगवाली बावीस परीषहरूपो भारी सेना सम्मुख खड़ी देखकर धीर-वीर महामुनिराज विवेकरूपी बाणों से पूर्ण धृतिभावनारूपी सेना द्वारा युद्धकर शीघ्र ही अपना मनोरथ पूर्ण कर लेते हैं। अर्थात् उपसर्ग-परीषहों पर विजय प्राप्त कर अपनी सल्लेखना के मनोरथ को पूरा कर लेते हैं ।।२०८, २०९।। ।। इस प्रकार धृतिभावना पूर्ण हुई॥ विधाय विधिना दृष्टि-ज्ञान-चारित्र-शोधनम्। चिरं विहरतां षष्ट्या , यति वनयाऽनया ॥२१॥ ॥ इति भावनासूत्रं ॥
SR No.090279
Book TitleMarankandika
Original Sutra AuthorAmitgati Acharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherShrutoday Trust Udaipur
Publication Year
Total Pages684
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Principle
File Size16 MB
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