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________________ मन्दिर (७८ ) सत्संगति क्यों? साधु, गुरुओं की इतनी ओक्षा करते हैं कि उनमें ही नहीं देते हैं । अतः अपने को गुरु दर्शन में क्या करना है? यदि पुण्योदय से साधु संघ के सहित आ जायें तो विशेष भक्ति करना चाहिये । प्रवचन सुनना चाहिए। जरूरी नहीं, सब साधु प्रवचन दें। लेकिन उनके दर्शन एवं आहारदान आदि का लाभ भी जरूर लेना चाहिए, यथासमय वैयावृत्ति भी करनी चाहिए। साधु के लिये ज्ञानोपकरण-संयमोकरण के अलावा ऐसी कोई वस्तु नहीं देनी चाहिये जिससे साघु एवं धर्म का अपलाप हो। लेकिन यदि किसी साधु की चर्या पर तुम्हारी आस्था न झुके तो उनकी निन्दा भी नहीं करनी चाहिये । जिन्हें आपने अपना धर्म गुरु माना है, वर्ष भर में एक बार सपरिवार या यथावसर उनके दर्शन- चन्दन करने के लिये अवश्य जाना चाहिए। उनसे कोई न कोई नियम, व्रत, संयम अवश्य लेना चाहिए, तभी वे हमारे धर्म गुरु बनेंगे और हर वर्ष कोई न कोई व्रत-नियम बढ़ाते रहना चाहिये। नियम प्रतों में लगे दोषों की आलोचनापूर्वक प्रायश्चित लेना चाहिये, तभी हम सभी का कल्याण होगा। इस प्रकार देव-शास्त्र-गुरु के दर्शन करके मंदिर जी से बाहर निकलते समय तीन बार आस्सही, आस्सही, आस्सही बोलना चाहिए। आस्सही बोलने का तात्पर्य है कि जिन देवों, क्षेत्रपालादि से हमने दर्शन-पूजन आदि के लिये स्थान लिया था, उन्हें सौंप दिया। दर्शन करके बाहर निकलते समय देव-शास्त्र-गुरु को पीठ नहीं दिखानी चाहिये। ऐसा शास्त्रकारों का मत है - " अग्रतो जिन देवस्य स्तोत्र - मन्त्रार्चनादिकम् । दुर्यान्त्र दर्शयेत् पृष्ठं सम्मुखं द्वार लंघनम् । । * अर्थात् जिन देव के आगे स्तोत्र-मंत्र और पूजन आदि करें परन्तु बाहर निकलते समय अपनी पीठ नहीं दिखायें। सम्मुख ही पिछले पैरों से चलकर द्वार का उलंघन करें। आज बस इतना ही..... बोलो महावीर भगवान की......
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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