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________________ · मन्दिर 401 सत्संगति क्यों? उसके लिये प्रकुष्ट पुण्य का संघयन चाहिये। जो सत्य से साक्षात्कार करा देते हैं, उसका नाम हैं सत्संगति । जो आन्तरिक सत्य है, संत उससे हमारा साक्षात्कार करा देते हैं। उस अंतरंग सत्य में प्रभु परमात्मा की अनुभूति करा देते हैं वह सन्त होते हैं। जो अन्त से सहित होते हैं यह संत होते हैं जिनकी सत्संगति संसार को अन्त कराने वाली होती हैं। सत्संगति संसृति कर अन्तः । सत्संगति का अर्थ- जिनकी संगति हमारे संसार के परिभ्रमण की यात्रा को मिटा देती है, जो अन्तरंग में विषय- कषायों के बवण्डर उठ रहे हैं, विषय-कषायों के तूफान आ रहे हैं। विषय-कषायों के जंगल में भटक गये हैं। कषायों के काँटे चुभ रहे हैं। इन सबसे परिमुक्त करके गुरु, हमारे अन्दर नयी स्फूर्ति, नया उजाला, नया प्रकाश उद्घाटित कर देते हैं। आपके पास सब कुछ हो । एक भक्त कहता है "शरीरं सुरूपं सदा रोग मुक्तं, यशश्चारु चित्रं धनं मेरु तुल्यं । गुरोरधिं पद्मे मनश्येत् न लग्नं ततः किं ततः किं ततः किं ? ।। " आपका शरीर सुन्दर है, रोगमुक्त है, यश है एवं सुन्दर चरित्र भी है और सुमेरु पर्वत के समान आपके पास धन है। फिर भी यदि गुरु चरणों की भक्ति नहीं हैं तो तुम्हारे पास कुछ नहीं है, कुछ नहीं है, कुछ नहीं है, गुरु परमात्मा का साक्षात्कार कराते हैं और जो व्यक्ति गुरु को अपने अन्तःस्थल में विराजमान कर लेता है तो गुरु के सहारे भगवान, परमात्मा अपने अन्दर भी आ जाते हैं। इतना सस्ता सौदा और कहाँ मिलेगा? आप अकेले भगवान को पकड़ने जाओ तो परेशान होंगे कि नहीं होंगे। लेकिन गुरु चरण की सेवा, वह अपने आप आपके अन्दर परमात्मा की अनुभूति करा देगी | एक बार हम गुरुभक्ति पर प्रवचन दे रहे थे कि गुरु भक्ति करनी चाहिए आदि। एक महिला ने प्रबंधन के बाद हमसे पूछा- महाराज जी आज हमारे साधु-गुरु शिथिलाचारी हो गये हैं, हम कैसे जाने कि ये सच्चे साधु-गुरु हैं? हमने कहा कि हमारे पास एक फार्मूला है सच्चे साधु पहचानने की। महिला बड़ी प्रसन्न हुई और आप लोग चाहते भी क्या हैं? यही न कि हमें साधु की परीक्षा करनी आ जाये। हमने कहा- तुम्हें साधु-गुरु जरूर मिलेंगे। जिस दिन आपकी आत्मा, सच्ची श्रावक बन जायेगी, उस दिन आपको सच्चे साधु, गुरु मिल जायेंगें । आजकल व्यक्ति या तो गुरुओं, साधुओं को अन्धभक्ति करता है जिससे उनके अवगुण भी गुण प्रतीत होते हैं या जहाँ हमारे चारित्र के प्रति साधु ध्यान नहीं दे- हमारी कमजोरी को प्रोत्साहन दे, वे हमारे गुरु हैं. ऐसे समय में यह कहावत चरितार्थ होती है कि लोभी गुरु लालची चेला, होय नरक में ठेलं ठेला । अतः इस बात का ध्यान भी हमें होना चाहिये | अथवा हमलोग
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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