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________________ मन्दिर (७०) माला क्यों? समय ऐसा निश्चित कर लीजिए की हमें केवल पाँच मिनट ही प्रभु का स्मरण करना है | पाँच मिनट में चाहे एक बार फेरो, लेकिन कायदे से फेरो। तो मैं उस ग्वाले की बात बता रहा था। वह अकेला बैठा-बैठा प्रभू से कहता था, प्रभु तू मेरे पास आ जा | मैं खाली रहता हूँ | मैं तेरे पैर दबाऊँगा | मैं तुमको बाजरे की मोटी-मोटी रोटी खिलाऊँगा ! मैं तेरी सेवा कलंगा। मैं तुझं दूध पिलाऊँगा, मैं तुझे नहलाऊँगा | तो एक विद्वान वहाँ से गुजर रहा था। वह उस ग्वालं की प्रार्थना को सुन रहा था। उसको बहुत ही झुंझलाहट आयी कि तू कैसा मूर्ख है? तू परमात्मा को ऐसे बुला रहा है । उसको पीटा | परमात्मा अवतरित हुआ । उस पण्डित को पकड़ लिया और उसको सजा दी। उस ग्वाले की भक्ति में खुशबू थी । उसकी भक्ति में आन्तरिक आह्वानन था । हमलांग शब्दो का आडम्बर टूटते है। प्रभु का प्रतत्र करने के लिये भक्त कभी शब्दों का आडम्बर नहीं ढूँढता है | कभी श्वांग नहीं करता है | भगवान होते हैं और जो परमात्मा, गुरु श्वांग से प्रसन्न हो तो वह परमात्मा, गुरु है ही नहीं। गुरु भावों को महत्त्व देते हैं. भाषा को महत्त्व नहीं देते हैं। भगवान ने आज तक भावों को महत्व दिया है । भाषा को कभी महत्त्व नहीं दिया । श्री महावीर जी में चले जाओ, जिनकी मैं अभी बात कर रहा था, अब वहाँ पर बहुत विशाल मन्दिर बन गया है। मीणा, गूजर आते हैं त्यौहारों पर रोटी. दाल, चावल, खीर लाते हैं और फर्श पर फेंकते हैं और कहते हैं ले, बाबा खा ले | गालियाँ देते हैं भगवान को । भगवान उनकी गालियों से प्रसन्न है । नानक महाराज कहते हैं कि उस खून की कमाई की पूड़ी से गरीब की खून-पसीने की मेहनत की सूखी रोटी जो है, उसमें ज्यादा रस है। आज तक किसी बड़े आदमी ने भगवान के दर्शन नहीं किये । लेकिन गरीब लोगों ने भगवान के बहुत दर्शन किये हैं। अगर अमोर आदमी ने दर्शन किये हैं तो उसे भी गरीब आदमी बनना पड़ा होगा। अमीर बनकर कभी भगवान के दर्शन नहीं हो सकते हैं। उसे हम जैसा गरीब बनना पड़ा होगा 1 जितने भी महापुरुष हुये हैं, उन्होंने सब कुछ छोड़ दिया और जंगल को चले गये, गरीब बन गये। अपना जो कुछ था, वह सब लुटा दिया । सय वंकार है । यह सब परमात्मा से मिलने में बाधा करते हैं । इसके माध्यम सं आपस की प्रेम-प्रीति टूटती है। यह माया ही सब हमारे भगवान में भेद करा देती हैं। दो मित्र थे । आपस में उनमें बड़ा प्रेम था । एक मित्र ने अपने खेत में ककड़ियाँ बो दी थीं । अच्छे-अच्छे फल की फसल बो दी। एक मित्र कहीं बाहर गया हुआ था । वह कई दिन वाद लौटा। उसे अपनी मित्र की याद आयी | यह तो अपने खेत पर था, ककड़ियों की रक्षा कर रहा था, फसल की रक्षा कर रहा था | एक अच्छी-सी ककड़ी को देखकर उसके मन में विचार आया और उसका मित्र सामने से आ रहा था। उसने अपने मित्र को देखा और सोचा कि यह तो बड़ी गड़बड़ हो गयी । वह आयेगा तो उसको ककड़ी खिलानी पड़ेगी तो यह ककड़ी टूट जायेगी।
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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