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________________ मन्दिर १६९) नाम "मन्दिर तीरथ भटकते, वृद्ध हो गया छैन । पग की पनहिया घिस गई, गया न मन का मैल ।।" "पाप करते हैं तो बेशुमार करते हैं। गिन गिन कर नाम लेते हैं परवर्दिगार का ||" ईश्वर का, परमात्मा का, गुरु का नाम गिन-गिन कर लेंगे जैसे रुपया गिन रहे हों । कहीं एक ज्यादा न चला जाए और पाप, कोई गिनती है। दिन भर में मन से, वचन , काय से, कृत से, कारिता से, अनमोदना से, समरंभ से, समारंभ सं, आरंभ सं, क्रोध से, मान से. माया से, लोभ से कितने प्रकार से हम लोग पाप करते जाते हैं? इसलिए प्रभु का नाम लेने के लिए १०८ : नों का प्रावधान रखा और विशेषता रखी उसके सुमेरु पर तीन दाने और डाल दिये। उन १०८ दानों को नियंत्रण में रखने के लिये तीन दाने और डाल दिये । वह तीन दाने हमारे मन, वचन, काय की एकाग्रता के प्रतीक है | सारे के सारे दानें अलग-अलग दो राउन्ड में रहते हैं, एक ही धागे के अन्दर रहते हैं | दोनों धागे एक ही दाने के अन्दर से गुजरते हैं । जहाँ भक्त और भगवान का भेद मिट जाता है "जब मैं था, तब हरि नहीं, जब हरि था मैं नाहिं । प्रेम गली अति सांकरी जामें दो न समाहिं ।।" जहाँ अंहकार नष्ट हो जाता है, वहाँ पर परमात्मा के दर्शन होतं हैं । तो यह तीन दाने रत्नत्रय के प्रतीक हैं जो १०८ प्रकार के कर्मों को रोक सकते हैं । रत्नत्रय क्या है? कल भी बताया था | हमारी बोल-चाल की भाषा में, हम सबसे पहले इसी बात का उपदेश देते हैं बच्चों को। बेटा देखभाल कर चलो । देखभाल कर चलना. अच्छी तरह देखकर चलना | मतलब कहीं घटना या दुर्घटना ना हो जाए। घटना व दुर्घटना क्यों होती है? क्योंकि हम अच्छी तरह देखकर नहीं चलते हैं। देखना, सम्यक् दर्शन है। भालना, सम्यक् ज्ञान है और चलना सम्यक चारित्र है । रत्नत्रय की आराधना से हम इमने प्रकार से दुष्कर्मों से छुट सकते हैं। ___ माला फेरने की आकुलता मत कीजिए कि इतनी माला फेरी | आप अपने इष्ट को केवल नौ बार ही जफ्येि । एक महानुभाव पूछ रहे थे कि महाराज, नौ बार ही णमोकार मंत्र पकने की बात क्यों कही जाती है? तो हमने नौ की ही बात बतायी थी कि नौ का अंक ऐसा है कि कहीं भी उसको दुगना करके उसका योग निकालना हो तो वह अपने स्वरूप में आ जाता है। कितने ही विस्तार में ले जाओ। जब हम उसका संकलम करते हैं तो वह अपने स्वरूप में आ जाता है। नी का अंक अपने स्वरूप को बताने वाला अंक है। कहने का मतलब कि माला जो है, वह आकुलता-ब्याकुलता से नहीं निराकुलता से फेरिये । आप दानों से मत गिनिये । अम्प
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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