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________________ मन्दिर (५९) स्वाध्याय लग गयी थी, वह इतनी नहीं रोयी और तुम इतना ज्यादा रो रहे हो, यह प्रथमानुयोग है करणानुयोग क्या है? तुम गुड़िया को सताते थे, मारते थे, चिढ़ाते थे, उसका फल है कि तुम गिरे । यह है करणानुयोग? चरणानुयोग क्या है? देखभाल कर चलते नहीं हो तो दोष किसका है ? इसका नाम है चरणानुयोग | और द्रव्यानुयोग क्या है। कि मेरा बेटा तो राजा बेटा है | आत्मा के कभी लगती नहीं है, चींटी मर गई । घोड़ा कूद गया। बच्चे खुश हो गये, उसका नाम है द्रव्यनुयोग। पहले से ही अगर राजा बेटा बन जाओ तो क्या होगा? जैसा आज हो रहा है, वैसा ही होगा । 'मैं रानी और तू रानी, कौन भरेगा कुंआ का पानी।' इन चारों अनुयोगों का अध्ययन कीजिए, चारों अनुयोगों का स्वाध्याय कीजिए ! एक प्रश्न आ पाता है कि महागज हम कुण जानते ही नहीं है | हम इतने पढ़े-लिखे नहीं हैं, विद्वान नहीं हैं । इसलिये हमारे आचार्यों ने बड़ी व्यवस्था की हैं | स्वाध्याय को अन्तरंग तप के अन्दर रखा है | स्वाध्याय परमं तपः और उस स्वाध्याय के भेद किये हैं। "वाथना-पृच्छनानुपेशाम्नाय धर्मोपदेशः" यह तत्त्वार्थसुत्र का सूत्र हैं | यदि आपको कुछ आता है तो वाचना भी स्वाध्याय है । पृच्छना, किसी से धर्म सम्बन्धी प्रश्न पूछना भी स्वाध्याय है। अनुप्रेक्षा, सुने हुये को / पढ़े हुये को वारवार चिन्तन करना अनुप्रेक्षा है यह भी स्वाध्याय है । आम्नाय- आम्नाय का मतलब क्या है? आप तो दो ही आम्नायें जानते हैं. एक तेरह पन्थी और दूसरी बीस पन्थी । दिगम्बर और श्वेताम्बर । इन आम्नाओं से स्वाध्याय का कोई मतलब नहीं है, कोई सम्बन्ध नहीं है। आम्नाय शब्द का अर्थ है शुद्धता । शब्दों को, ग्रन्थ को शुद्धिपूर्वक पढ़ना, व्याकरण की शुद्धिपूर्वक पढ़ना। छन्द, समास, सन्धि का ध्यान रखते हुए ग्रन्थ का विश्लेषण करना-पढ़ना आम्नाय नाम का स्वाध्याय है। प्राचीन काल की प्रणाली रही। प्रेस तो थे नहीं। एक व्यक्ति पढ़ता था और सौ व्यक्ति लिखते थे, प्रतिलिपियाँ बनाते थे। तां जिनके आम्नाय नाम का स्वाध्याय होता था यह व्यक्ति उच्चारण करता था और बाकी के व्यक्ति लिखते थे, ऐसे लोगों को आचार्यों ने उच्चारणाचार्य की उपाधि से सम्बोधित किया है। वीरसेन आचार्य ने 'धवला' टीका के अन्दर जगह-जगह उध्चारणाचार्य का अभिमत दिया है, उल्लेखन किया है। अमुक वात उच्चारणाचार्य के मत से इस प्रकार से कही है- आपने बहुत प्रकार के आचार्यों के नाम सुने होंगे । हम बहुत से विद्वानों को यह बात बताते हैं और वह ताज्जुब में होते हैं। एलाचार्य, बालाधार्य, गणधराचार्य, निर्यापकाचार्य यह तो आपने नाम सुने होंगे | लेकिन उध्यारणाचार्य का नाम आपने बहुत कम सुना होगा । अगर जानतं भी होंगे तो उसकी व्याख्या और व्यवस्था को नहीं जान पाये | उच्चारण करना भी स्वाध्याय है।
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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