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________________ मन्दिर भोगों के भिखारी लोक व्यवहार में नारी को 'वामांगी कहा गया है। मंदिर जी भी समवशरण का प्रतीक माना है । अतः चारों दिशाओं में विद्यमान भगवान की छवि अवलोकन करने की भावना परिक्रमा करते समय होनी चाहिए। इस प्रकार परिक्रमा करते समय भी कोई स्तुति, स्तोत्र, पाठ आदि बोलते रहना चाहिए। तीन प्रदक्षिणा देने के बाद पुनः वेदी के एक ओर खड़े होकर नौ बार णमोकार मंत्र जपना साहिए ! त्यहत में व्यक्ति नहुत जल्टी णमोकार मंत्र पढ़कर ढोक लगाकर घर चले जाते हैं और इतने में ही देव-दर्शन की विधि को पूरा समझ लेते हैं । क्या आपको मालूम है कि नौ बार णमोकार मंत्र पढ़ने में २७ श्वांसोच्छवास का समय लगता है? इतने समय में ही नौ बार णमोकार पढ़ना चाहिये, तभी उस मंत्र पढ़ने का फल मिल सकता है। भागा क भिखारा कई-कई लोग मन्दिर जी में बिल्कुल मानपूर्वक आते हैं एवं नमस्कार-परिक्रमा आदि चुपचाप लगाकर बाहर चले जाते हैं। न कोई भक्ति, न कोई स्तुति । इस प्रकार की प्रक्रिया देखकर ऐसा लगता है कि धीरे से दर्शन करना, प्रभो! कहीं जाग न जायें। कल हम धोखा देके गये थे, आज भी धोखा देने आये हैं। जैसे कि उनके मन में चोर घुसा हो, आहट होने पर भगवान के जागने की सम्भावनायें हैं | पहले कई बार हम भगवान को धोखा दे करके गये। आज भी धाखा से दर्शन करने आये हैं | भक्त को डर है कि कहीं भगवान जाग गये तो हमसे कहीं कुछ माँग न बैठे। क्योंकि जो .. स्वयं मंदिर जी में भगवान सं माँगने आया हो, वह मंदिर जी में भगवान को क्या दे सकता भूले से आज मैं मन्दिर आया हूँ, ये न समझना कुछ त्यागने आया हूँ। मैं तो दीवाना हूँ भोगों का जग में, यहाँ भी भोगों को माँगने आया हूँ। कई लोग भगवान के सामने पंचेन्द्रिय के भोगों के भिखारी बनकर आये । भगवान से क्या . नहीं मांगा? जो नहीं मांगना चाहिए था, जैसे- धन-स्त्री-पुत्र, कारखाना, नौकरी, व्यापार, हारजीत या यूँ कहें कि पांच पापों की सामग्री । पर कभी हम लोगों ने विचार किया कि हम किनसे क्या मांग रहे हैं? जो पाँच पापों के त्यागी हमेशा के लिए हैं, उन्हीं से हम पांच पापों की सामग्री मांग रहे हैं, तुच्छ इन्द्रियों की सम्पदा याच रहे हैं। अरे! माँगना ही है तो कुछ शाश्वत माँगों, जो कभी हमसे अलग न हो, नष्ट नहीं हो
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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