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________________ मन्दिर (३८) परिक्रमा क्यों? तंत्र विज्ञान के अनुसार तिलक लगे व्यक्ति से राजा-मंत्री, जज आदि पढ़े-लिखे उच्चस्तर के लोग भी प्रभावित होते हैं एवं उनके सोचे अनुसार कार्य भी कर देते हैं। अतः तिलक भी प्रतिदिन लगाना चाहिए। आज के व्यक्ति तिलक लगाने में शर्म करते हैं या जिसने तिलक लगा रखा है, उसकी मखील मजाक उड़ाते हैं कि लो ! ये आ गये तिलकधारी ! पण्डित ! पुजारी !! जनेऊधारी आदिआदि । अतः आप स्वयं सोचें कि ऐसे लोगों के जीवन में जब धार्मिक चिन्हों की उपेक्षा- अवहेलना होती है, तब क्या ये स्वयं इस पवित्र धर्म की आराधना कर पायेंगे? कोई तिलक लगाकर, जनेऊ पहनकर गलत काम करे तो तीलक जने की तो नहीं हो जायेगी ? कोई दीपक लेकर कुँये में गिरे तो गलती किसकी ? अतः तिलक लगाने में यदि स्वयं को शर्म लगे तो तिलक लगाने वाले का मखौल नहीं उड़ाना चाहिए। किन्तु स्वयं भी तिलक लगाकर धार्मिकना से गौरान्वित होना चाहिए । कुछ लोग तिलक की, जनेऊ की इसलिए उपेक्षा करते हैं कि तिलक लगाकर, जनेऊ पहनकर धार्मिकता को दिखाने से क्या लाभ? धर्म दिखाने का नहीं, अन्तरंग ( मन ) साफ होना चाहिए | हम आपसे पूछना चाहते हैं कि जब आपको धार्मिक चिन्हों को ही धारण करने में ग्लानि है, तब आपका मन साफ कैसे हुआ? जिसे खाकी वर्दी पुलिस की, गहरे हरे रंग की वर्दी मिलिट्री की, काले रंग का कोट वकील का पहनने में शर्म-संकोच होगा, क्या वह राष्ट्र-देश-प्रान्त के कानून की रक्षा कर सकेगा? आप स्वयं सोचें-विचारें ? परिक्रमा क्यों? गन्धोदक-तिलक लगाने के बाद वेदी की तीन प्रदक्षिणा (प्ररिक्रमा) लगानी चाहिए। जहाँ परिक्रमा नहीं हो वहाँ विकल्प नहीं करना चाहिए। ये तीन प्रदक्षिणा जन्म जरा-मृत्यु के विनाश हेतु तथा मन-वचन-काय से भक्ति की प्रतीक रूप, वायें हाथ से दायें हाथ की तरफ लगायी जाती है क्योंकि "आत्मनः प्रकृष्टं दक्षिणीकृत्य अयनं गमनमिति प्रदक्षिणा" इस व्युत्पत्ति के अनुसार जो गुणों में श्रेष्ठ हो, उन्हें अपने दक्षिण- पार्श्व (दाहिने हाथ की ओर) रखते हुए जो गमन किया जाये, वही 'प्रदक्षिणा' कहलाती है। यह एक व्यवहारिक नियम है कि प्रकृति के कृत्रिम अकृत्रिम यंत्र जैसे घड़ी, पंखा, नक्षत्रों का गमन आदि दाहिनी ओर से ही होता है। इनका बायीं ओर चलना अशुभ है। शादी की भँयरें भी मंगलता का सूचक है, दायीं ओर से ही लगायी जाती लोक व्यवहार में पुरुष को उत्तम मानने के कारण से किसी भी विशेष कार्य में स्त्री को बायीं ओर रखते हैं और पुरुष को स्त्रियों के दाहिनी ओर खड़ा करते हैं। इसलिए ही सम्भवतः
SR No.090278
Book TitleMandir
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmitsagar
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, & Ritual
File Size2 MB
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