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महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
आउच्छिवि गउ बोहित्यएण' । सहं णावरेहिं रंजियजएहिं* गुरु लिहिउं पत्तु नियकण्णि करिवि भूतिलउ णामु बहुधरविसि नूरहिं वज्जंतहिं पय णवंतु आसकिय वणिवर काइ एल्यु पीइंकरु पभणइ हउं समत्यु ता दिट्ठउं जिणहरु गिरि व तुंगु तहिं णिग्गउ पेच्छइ जुज्झरंगु अवरेक्क कण्ण रोवंति जति
पहसंतहिं जलकीलारएहिं । करिमयररउदु समुदु तरिवि । गरिवरवेढि पट्टणु पइठु । जणु सउहुं पराइउ जय भगंतु । उत्तरु दिज्जेस को महत्थु । मा 'करह किं पि संदेहु एत्थु । वंदिउ जिणु तवसिहिहुयणिरंगु । भडरूंडखंडचुयरुहिररंगु' | तहि पच्छइ गउ सो चंदकति ।
घत्ता -
- भवगणु गंपि णवचामीयरवण्णइ । आसणु कण्णाए दिण्णउं तासु पसण्णइ ॥8॥ ( 9 )
तें पुच्छिय सुंदरि कहहि गुज्झ भणु भणु मा भी भीवसंगि
किं उ पुरवरु तेण तुज्झु । णियणयणपरज्जियवणकुरंगि ।
[ 101.8.4
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(8) [. AP add after this उन्मियसीहजडपसत्वरण 2. AP रजियपरेहिं । 3. P करो। 1. A खंड
(9) 1. AP ण जुज्यु - AP किं भणु मणु। 5. A मा भीही वरंगि: P मा बीहहि यरंगि।
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किया। दूसरे दिन सुधी पुरुष वह पूछकर जहाज के साथ गया । विश्व को रंजित करनेवाले, जलक्रीड़ा में रत हँसते हुए नागरिकों के साथ, गुरु के द्वारा लिखित पत्र को अपने कानों में कर (सुनकर ), जलगजों और भगरों से भयंकर समुद्र को पारकर वह बहुत से घरों से विशिष्ट और गिरिवर से घिरे हुए भूतिलक नामक नगर में पहुँचा । बजते हुए नगाड़ों के साथ पैर पड़ता हुआ और जयकार करता हुआ जनसमूह सामने आया । वणिक्लोग आशंकित हो उठे कि यह क्या ? कौन महार्थ इसका उत्तर देगा ? प्रीतिंकर कहता है- मैं समर्थ हूँ, आप लोग इसमें कुछ भी सन्देह न करें। उसने जाकर पहाड़ की तरह ऊँचा जिनमन्दिर देखा और तप की ज्वाला में कामदेव को नष्ट कर देनेवाले जिनदेव की वन्दना की। वहाँ से निकलकर वह युद्ध का दृश्य देखता है, जो योद्धाओं के धड़ों के खण्डों से गिरते हुए रक्त से रंजित था। एक और कन्या रोती हुई जा रही थी । चन्द्रमा के समान कान्तिवाला वह उसके पीछे-पीछे गया ।
घत्ता - भवन के आँगन में जाकर नवस्वर्ण के समान रंगवाली उस प्रसन्न कन्या ने उसके लिए आसन दिया ।
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उसने पूछा - "हे सुन्दरी ! अपना रहस्य समझाओ, कैसे तुम्हारा पुरवर नष्ट हो गया है ? अपने नेत्रों